नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने मुस्तफाबाद से विवादित चेहरा ताहिर हुसैन को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। ताहिर हुसैन वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान हिंसा भड़काने और बहुसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने की साजिश रचने का कोर्ट में खुद कबूल किया था। उस समय ताहिर हुसैन आम आदमी पार्टी (AAP) के पार्षद थे, लेकिन दंगों में शामिल होने के आरोपों के बाद उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को एक तस्वीर पोस्ट करते हुए घोषणा की कि ताहिर हुसैन AIMIM में शामिल हो गए हैं और आगामी विधानसभा चुनाव में मुस्तफाबाद सीट से पार्टी के उम्मीदवार होंगे। ओवैसी ने लिखा, "ताहिर हुसैन ने AIMIM जॉइन किया है। उनके परिवार और समर्थकों ने मुझसे मुलाकात की और पार्टी में शामिल हुए।" इस घोषणा के बाद AIMIM को तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। ओवैसी, जो अक्सर शांति और सौहार्द की बात करते हैं, ने एक ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया है जो देश की राजधानी को दंगों की आग में झोंकने और निर्दोष लोगों की हत्या कराने का आरोपित है। ताहिर हुसैन पर 2020 के दंगों में सक्रिय भूमिका निभाने का आरोप है। उन्होंने खुद कोर्ट में स्वीकार किया था कि "हिंदुओं को सबक सिखाने के लिए दंगों की साजिश रची थी।" उनके घर से ईंट-पत्थर और पेट्रोल बम बरामद हुए थे। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में उन्हें छत पर लोहे की रॉड के साथ देखा गया था। आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या का आरोप भी ताहिर हुसैन पर है। कहा जाता है कि उनके निर्देश पर ही मुस्लिम दंगाइयों की भीड़ ने अंकित शर्मा की बर्बर हत्या की थी। मुस्तफाबाद सीट मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक माने जाते हैं। यहां से आम आदमी पार्टी के हाजी यूनुस मौजूदा विधायक हैं, लेकिन इस बार पार्टी ने उनका टिकट काटकर आदिल खान को चुनाव मैदान में उतारा है। AIMIM के ताहिर हुसैन के मैदान में उतरने से मुस्लिम वोटों में बंटवारे की संभावना बढ़ गई है, जिससे आम आदमी पार्टी को नुकसान हो सकता है। ओवैसी बार-बार देश में शांति और एकता की बात करते हैं, लेकिन उनके फैसले इसके उलट नजर आते हैं। एक ऐसे व्यक्ति को चुनावी मैदान में उतारना, जिसने राजधानी को दंगों में झोंकने की साजिश रची और निर्दोष लोगों की हत्या कराई, ओवैसी की मंशा और उनकी पार्टी की राजनीति पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह निर्णय न केवल ओवैसी की राजनीति पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कुछ राजनीतिक दल अपनी विचारधारा और नैतिकता को दरकिनार कर केवल वोट बैंक की राजनीति करते हैं। ऐसे दागी चेहरों को राजनीतिक मंच देने से समाज में और अधिक ध्रुवीकरण और अशांति का खतरा बढ़ सकता है। कोई नेता तो नहीं गया, लेकिन 600 परिवारों की मदद के लिए आगे आया हाईकोर्ट MP में 5 पिल्लों का बेरहमी से क़त्ल, PETA इंडिया ने दर्ज करवाई FIR 'वक्फ की 8.72 लाख मस्जिद/प्रॉपर्टी, 37% संपत्तियों का ही डिजिटलीकरण', केंद्र का संसद में खुलासा