आइए जानते हैं क्या होता है हिरण्यगर्भ दान और कैसे कर सकते हैं यह

दुनियाभर में बहुत कम लोग जानते हैं कि हिरण्यगर्भ दान कैसे करते हैं. ऐसे में अगर आप भी उन्ही में से एक हैं तो आइए आज हम आपको बताते हैं कि यह दान कैसे किया जाता है.

हिरण्यगर्भ दान - कहते हैं इस दान की तैयारी और व्यवस्था तुला पुरुष दान जैसी ही होती है इसी के साथ इस दान को देने वाला मृदंग के आकार या सुनहले कमल के आकार का कुंड बनाता है. कहते हैं इसकी ऊंचाई बहत्तर अंगुल और चौड़ाई, अड़तालीस अंगुल होनी चाहिए और इस सोने के पात्र को हिरण्यगर्भ कहा जाता है. कहते हैं इसे तिल के ढेर पर रखा जाता है वहीं इसके बाद पौराणिक मंत्रों से इस पात्र को संबोधित किया जाता है, उसे हिरण्यगर्भ (सृष्टि रचयिता) के समान माना जाता है.

इसके बाद दान देने वाले उस पात्र के अंदर उत्तर की ओर मुंह कर बैठ जाता है और यह गर्भ में स्थित शिशु की तरह पांच बार सांस लेने की अवधि तक उसमें बैठा रहता है. वहीं उसके हाथों में ब्रह्मा और धर्मराज की स्वर्ण प्रतिमा होती है और गुरु इस पात्र के ऊपर गर्भाधान, पुंसवन आदि के मंत्र पढ़ता है. कहते हैं इसके बाद मंगल बाजे बजाए जाते हैं और गुरु दानकर्ता को पात्र से बाहर निकल आने को कहता है और उसके बाकी संस्कार करता है.

वहीं दान देने वाला हिरण्यगर्भ के लिए मंत्र पाठ करता है और अंत में वह कहता है- 'पहले मैं नश्वर शरीर के रूप में मां के गर्भ में पैदा हुआ था, किंतु अब मैं गुरु के आदेश से दिव्य शरीर धारण करूंगा.' इस तरह हिरण्यगर्भ पात्र गुरु और यज्ञ कराने वालों में बांट देते हैं.

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