बकरा ईद : एक बलि के कारण हर साल दी जाती है लाखों बेजुबानों की कुर्बानी

मुस्लिम धर्म में बकरा ईद मनाने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। इस दिन लोग बकरों की कुर्बानी देते हैं। हालांकि ऐसा किया क्यों जाता है ? लाखों बेजुबानों को क्यों हर साल मौत के घाट उतार दिया जाता है ? आइए इसके पीछे की वजह जानते हैं ?

प्रति वर्ष बकरा ईद के दिन लोग अपने घर में पल रहे बकरों को मौत के घाट उतारते हैं और इस प्रक्रिया को नाम दिया जाता है कुर्बानी का । वहीं जिन लोगों के घर पर बकरा नहीं होता है, वे कुछ दिन पहले से इसकी खरीद-फरोख्त में लग जाते हैं। कुर्बानी या बलि देने के बाद लोग इसके मांस को रिश्तेदारों और मित्रों में भी बांटते हैं। इस तरह बकरा ईद का त्यौहार मनाया जाता है। 

क्यों मनाते हैं बकरा ईद ?

बकरा ईद कैसे मनाई जाती है, इस सवाल के बाद यह यह जानना बेहद आवश्यक है कि बकरा ईद मनाई क्यों जाती है। इसे लेकर ऐसा कहा जाता है कि मुस्लिम्स के पैग़म्बर और हज़रत मोहम्मद के पूर्वज हज़रत इब्राहिम की दी गई कुर्बानी की याद में बकरा ईद मनाई जाती है। यह मान्यता है कि जब हज़रत इब्राहिम अल्लाह की भक्ति कर रहे थे, तो उस दौरान उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उनकी प्रार्थना को अल्लाह ने कबूल कर लिया था। 

अल्लाह ने इसके बाद हजरत की परीक्षा ली थी। जहां परीक्षा में अल्लाह ने हजरत को उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी के लिए कहा था। तब हजरत ने अपने बेटे की कुर्बानी देना चाही। क्योंकि हजरत अपने बेटे से अधिक प्रेम करते थे। हजरत बेटे की बलि दे ही रहे थे, कि तब ही अल्लाह के द्वारा उनके बेटे के स्थान पर एक बकरे को रख दिया गया और इस परीक्षा में हजरत पास हो गए। तब से मुस्लिम  इसे बकरा ईद के रूप में मनाने लगे। 

 

 

 

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