नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में गोमती नदी के किनारे बसे सुल्तानपुर की सल्तनत पर काफी समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा है, किन्तु रायबरेली और अमेठी की तरह इस सीट को कभी भी वीवीआईपी सीट की अहमियत नहीं मिल पाई है। इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस से लेकर जनता दल, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जीत का परचम लहराने में सफल रही हैं। किन्तु समाजवादी पार्टी (सपा) इस सीट पर कभी भी जीत दर्ज नहीं कर सकी है। लोकसभा चुनाव: फ़िरोज़ाबाद सीट से लड़ेंगे शिवपाल सिंह, चाचा-भतीजे में होगी टक्कर 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के किले से सटे हुए इलाके से 'गांधी परिवार' के वारिस वरुण गांधी को उम्मीदवार बनाकर इस सीट को हाई प्रोफाइल तो बनाया। साथ ही साथ 16 वर्षों के अपने सूखे को भी समाप्त कर कमल खिलाने में सफल रही। आजादी के बाद से सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर अब तक कुल 16 लोकसभा चुनाव और 3 उपचुनाव का आयोजन हुआ है। 1951 से 1971 तक जनसंघ ने कांग्रेस से सीट छीनने का काफी प्रयास किया, लेकिन कभी सफल नहीं हो सकी। जनसंघ को पहली बार कामयाबी 1977 में मिली। पहली दफा इस सीट पर 1951 में हुए चुनाव में कांग्रेस के बीवी केसकर ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1957 में गोविन्द मालवीय, 1962 में कुंवर कृष्णा वर्मा, 1967 में गनपत सहाय और 1971 में केदार नाथ सिंह निर्वाचित होकर सांसद बने। लोकसभा चुनाव: द्रमुक ने जारी किया घोषणापत्र, नीट को ख़त्म करने का किया वादा सुल्तानपुर लोकसभा सीट की अपनी एक विशेषता है। भाजपा के विश्वनाथ शास्त्री को छोड़ दिया जाए तो दूसरा कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो इस सीट पर दूसरी मर्तबा सांसद बनने में सफल रहा हो। यही कारण रहा कि इस सीट पर किसी एक नेता का कभी वर्चस्व नहीं रह सका। आजादी के बाद कांग्रेस ने यहां 8 बार जीत दर्ज की, किन्तु हर बार चेहरे भिन्न रहे। इसी तरह से बसपा यहाँ से दो बार जीती और दोनों बार अलग-अलग उम्मीदवार थे। जबकि भाजपा ने चार बार जीत दर्ज की जिसमें तीन नए चेहरे शामिल रहे। खबरें और भी:- भाजपा के 'चौकीदार' अभियान पर सपा-बसपा का हमला, अखिलेश-माया ने दागे ट्विटर तीर ममता बनर्जी के खिलाफ की आपत्तिजनक टिप्पणी, बाबुल सुप्रियो के खिलाफ दर्ज हुई शिकायत प्रियंका की गंगा यात्रा पर सीएम योगी का कटाक्ष, कहा अब तो मानेंगी साफ़ हुई गंगा