बिना चुनाव के कैसे प्रधानमंत्री बन गए थे नेहरू, किसने दिलवाई थी शपथ ?

नई दिल्ली : 26 जनवरी 2023 को देश 74वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है। हमारे संविधान को 74 साल पूरे होने जा रहे हैं। लेकिन, गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर अक्सर ये सवाल उठते रहे हैं कि, देश का संविधान बनने से पहले जवाहरलाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री कैसे बने ? बता दें कि, भारत के पहले लोकसभा चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से लेकर 21 फरवरी 1952 मध्य हुए थे। इसके बाद ही भारत की प्रथम संवैधानिक सरकार का चुनाव हुआ। उस समय देश के प्रथम पीएम नेहरू, दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। तब तक सरदार वल्लभभाई पटेल का देहांत हो चुका था। किन्तु, देश तो अगस्त 1947 में ही स्वतंत्र हो गया था। फिर 15 अगस्त 1947 से लेकर 1952 में हुए पहले चुनाव तक भारत पर किसने शासन किया? नेहरू कैसे बिना चुनाव के ही देश के प्रथम पीएम बन गए? क्या प्रधानमंत्री पद के लिए नेहरू से बेहतर सरदार पटेल थे ? क्योंकि अक्सर यह कहा जाता है कि सरदार पटेल यदि देश के प्रथम पीएम बने होते, तो आज देश की स्थिति कुछ और होती। ऐसे में ये सवाल भी उठता है कि, क्या सरदार पटेल खुद पीएम नहीं बनना चाहते थे या फिर उन्हें बनने दिया गया। क्या उस वक़्त पीएम चुनने में महात्मा गांधी की कोई भूमिका थी? ऐसे कई सवाल हैं जो कई कई सालों से लोगों के मन में हैं और अक्सर विभिन्न मौके पर उठते हैं।

दरअसल, 1945 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुआ, तो अंग्रेज़ों को यह समझ में आ गया था कि अब भारत को ज्यादा दिनों तक गुलाम बनाकर नहीं रखा जा सकता है। वहीं, आजादी के जी जान से जुटे स्वतंत्रता संग्राम के नेता भी इस बात को समझ रहे थे कि अब लड़ाई बिल्कुल अंतिम चरण में पहुचं चुकी है। ऐसे में ब्रिटिश हुकूमत ने 1946 में कैबिनेट मिशन की योजना बनाई। इस कैबिनेट मिशन को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि यह स्वतंत्रता के बाद के सरकार की रूपरेखा था। अंग्रेज अधिकारियों को भारतीय नेताओं से मिलकर इस संबंध में बातचीत करनी थी। इस प्रकार से देश में अंतरिम सरकार की रूपरेखा बननी तय हुई। ये भी तय हुआ कि, कांग्रेस का अध्यक्ष ही भावी सरकार का प्रधानमंत्री बनेगा। उस वक़्त कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आज़ाद थे, जिन्होंने गांधी के कहने पर इस्तीफा दे दिया था। 

सरदार पटेल को पीएम बनाने के पक्ष में थी पूरी तत्कालीन कांग्रेस:-

इसके बाद कांग्रेस के नए अध्यक्ष यानी देश के भावी पीएम की तलाश आरम्भ हुई। अप्रैल 1946 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई। इसमें महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, डॉ। राजेंद्र प्रसाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, आचार्य जेबी कृपलानी सहित कई दिग्गज नेता पहुंचे। उस वक़्त कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों द्वारा किया जाता था। लेकिन, दिलचस्प बात ये थी कि किसी भी प्रांतीय कमेटी ने नेहरू के नाम का प्रस्ताव नहीं किया था। कांग्रेस की 15 प्रांतीय कमेटियों से 12 सरदार वल्लभ भाई पटेल को अध्यक्ष यानी भावी पीएम बनाने के पक्ष में थीं। इसका कारण यह था कि सरदार पटेल की संगठन पर पकड़ बेहद मजबूत थी। उस वक़्त अन्य 3 कांग्रेस कमेटियों ने जेबी कृपलानी और पी सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया था, लेकिन किसी ने भी नेहरू का नाम नहीं लिया। इससे एक बात तो स्पष्ट थी कि बहुमत पटेल के पक्ष में था।

पंडित नेहरू को पीएम बनाना चाहते थे महात्मा गाँधी:-

हालांकि, उस वक़्त तक एक बात तो स्पष्ट हो चुकी थी कि महात्मा गांधी, नेहरू को ही पीएम पद पर देखना चाहते थे। गांधी जी ने जब मौलाना अबुल कलाम आजाद को कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ने के लिए कहा था उस समय उन्हें भी यह बताई थी। बताया जाता है कि कांग्रेस की मीटिंग से पहले महात्मा गांधी ने मौलाना को पत्र में लिखा था कि, 'यदि मुझसे पूछा जाए तो मैं जवाहर को ही प्राथमिकता दूंगा। मेरे पास इसके कई कारण हैं। अभी उसकी चर्चा क्यों की जाए?' लेकिन, महात्मा गांधी के इस स्पष्ट रुख के बाद भी कांग्रेस के अन्य नेता नेहरू को पार्टी अध्यक्ष और पीएम बनाने पर राजी नहीं थे। 

महात्मा गांधी के दबाव के आगे झुके नेता:-

आखिर में जब बापू का दबाव बढ़ा तो, आर्चाय कृपलानी को कहना पड़ा कि मैं बापू की भावनाओं का आदर करते हुए जवाहर लाल नेहरू के नाम का प्रस्ताव करता हूं। इस बात के साथ ही उन्होंने एक कागज पर पंडित नेहरू का नाम लिखकर आगे बढ़ा दिया। जिसके बाद कार्यसमिति के कई सदस्यों ने इस पर दस्तखत कर दिए। इस कागज पर सरदार पटेल ने भी हस्ताक्षर किए। बैठक में महासचिव जेबी कृपलानी ने भी एक और कागज पर सरदार पटेल से अपनी उम्मीदवारी वापस लेने और नेहरू को अध्यक्ष बनने देने का आग्रह किया। हालाँकि, कृपलानी ने अब भी अंतिम फैसला महात्मा गांधी पर छोड़ दिया था। इसके बाद महात्मा गांधी ने नेहरू के नाम वाला कागज सरदार पटेल की ओर दस्तखत के लिए बढ़ा दिया। महात्मा गांधी के फैसले का आदर करते हुए सरदार पटेल ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। 

पटेल के आधीन काम नहीं करेंगे नेहरू :-

महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी अपनी पुस्तक 'पटेल-ए लाइफ' में लिखा है कि कोई और कारण हो ना हो, मगर इससे सरकार पटेल अवश्य आहत हुए होंगे।  दरअसल, महात्मा गांधी को लगता था पटेल के पीएम बनने के बाद से नेहरू उनके नेतृत्व में कार्य करना पसंद नहीं करेंगे। इस प्रकार से नेहरू के पीएम बनने की राह महात्मा गांधी के कारण खुली थी। आजादी के बाद 15 अगस्त 1947 को सरदार पटेल को देश का प्रथम उप प्रधानमंत्री बनाया गया। साथ ही पटेल को आजाद भारत के गृहमंत्रालय का भी जिम्मा सौंपा गया। उनके पास सूचना और प्रसारण मंत्रालय का भी प्रभार था। 

लार्ड माउंटबेटन ने नेहरू को दिलवाई थी शपथ:-

15 अगस्त 1947 को गर्वनर जनरल (राष्ट्रपति समान पद) लार्ड माउंटबेटन ने जवाहर लाल नेहरू को भारत के प्रथम पीएम पद की शपथ ग्रहण करवाई थी।  उस समय वल्लभ भाई पटेल सक्रिय राजनीति में थे। वह पीएम पद के प्रबल दावेदार हो सकते थे। बता दें कि, इसी लार्ड माउंटबेटन की पत्नी एडविना के साथ पंडित नेहरू के प्रेम संबंधों पर अक्सर चर्चा होती है और इस विषय में खुद माउंटबेटन भी सबकुछ जानते थे  लेकिन, संविधान बनने से पहले नेहरू के प्रधानमंत्री बनने पर ये सवाल भी उठते हैं कि, आखिर 1947 में वे किसके नाम की शपथ लेकर पीएम बने थे ? इस संबंध में सुधांशु त्रिवेदी कहते हैं कि, 1914 में कांग्रेस पार्टी ने प्रस्ताव पारित करके ब्रिटिश हुकूमत के प्रति निष्ठा जताई थी। 1946 में जब पहली अंतरिम सरकार बनी, तब पीएम नेहरू ने ब्रिटिश क्वीन के नाम पर ही शपथ ग्रहण कर प्रधानमंत्री बने थे। उस समय, समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने यह कहे हुए सरकार में शामिल होने से मना कर दिया था कि वो किसी भी सूरत में ब्रिटेन की महारानी के नाम की शपथ ग्रहण नहीं कर सकते। बताया जाता है कि, 1946 के बाद 1947 ने भी नेहरू, ब्रिटिश क्वीन के नाम पर ही शपथ लेकर बिना चुनाव के प्रधानमंत्री बने। इसके बाद जब 1951-52 में देश के प्रथम चुनाव हुए, तब तक पटेल स्वर्ग सिधार चुके थे और संविधान भी बन चुका था, जिसके बाद पंडित नेहरू ने संविधान की शपथ लेकर प्रधानमंत्री पद ग्रहण किया। 

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