भगवान शिव को बेलपत्र अत्यंत प्रिय होता है, दूसरे शब्दों में कहें तो अगर भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र शामिल नहीं किया जाए तो वह पूजा अधूरी मानी जाती है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव की पूजा में लंबे-चौड़े अनुष्ठान जरूरी नहीं होते। अगर सच्चे मन से पूजा की जाए तो वह प्रसन्न हो जाते हैं। हालाँकि इस सरल पूजा में भी बेलपत्र अवश्य चढ़ाना चाहिए। आज हम जानेंगे भगवान शिव को बेलपत्र प्रिय होने के पीछे के कारण और बेल के वृक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई। बेल वृक्ष की उत्पत्ति स्कंद पुराण के अनुसार एक समय की बात है जब माता पार्वती यात्रा कर रही थीं और उनके शरीर से पसीने की एक बूंद मंदराचल पर्वत पर गिरी। पसीने की इस बूंद से पर्वत पर एक वृक्ष उत्पन्न हुआ, जो बेल वृक्ष के नाम से जाना गया। चूँकि यह वृक्ष माता पार्वती के पसीने से उत्पन्न हुआ है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि इसमें उनके सभी रूपों का समावेश है। बेल वृक्ष की जड़ को गिरजा के स्वरूप का प्रतीक माना जाता है। जहां बेल के तने में माहेश्वरी और उसकी शाखाओं में दक्षिणायनी का वास होता है, वहीं पत्तों में मां पार्वती का वास होता है। दूसरी ओर कात्यानी,फलों में निवास करती हैं जबकि गौरी फूलों में निवास करती हैं। इन रूपों के अलावा मां लक्ष्मी सभी बेल वृक्षों में निवास करती हैं। ऐसा माना जाता है कि बेलपत्र माता पार्वती का स्वरूप है, यही कारण है कि भगवान शिव के लिए इसका बहुत महत्व है। भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं। बेलपत्र का महत्व हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार माना जाता है कि भगवान शिव को बेलपत्र बेहद पसंद है। परिणामस्वरूप शिव पूजा में इसे शामिल करना अनिवार्य माना जाता है। कहा जाता है कि बेलपत्र चढ़ाने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनचाहा आशीर्वाद देते हैं। बेल के पत्ते ख़राब नहीं होने चाहिए ऐसा माना जाता है कि बेलपत्र चढ़ाने से भगवान शिव का मस्तक ठंडा रहता है। हालाँकि यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि इसके लिए तीन पत्तों का उपयोग किया जाना चाहिए और वे ख़राब नहीं होने चाहिए। आज धन लाभ के लिए करें श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम का पाठ आज सावन संकष्टी चतुर्थी पर करें ये उपाय, होगी धनवर्षा आखिर क्यों भोलेनाथ को प्रिय है धतूरा? जानिए कारण