हमारा देश त्योहारों का देश कहा जाता है क्योंकि यहाँ साल के बारह महीने देश के किसी ना किसी कोने में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है. अलग-अलग धर्म के लोग अलग त्योहारों के जरिये अपनी ख़ुशी जाहिर करते हैं. हमारे देश में ईद भी उतने ही प्यार से मनाई जाती है जितनी की दिवाली। हर त्यौहार में सभी जाति और धर्म के लोग पूरी ख़ुशी से शरीक होते हैं और यही खासियत भारत को पूरे विश्व से अलग और खास बनाती है. होली एक ऐसा मस्ती भरा त्यौहार है जिसको लेकर कहा जाता है कि इस दिन तो दुश्मन भी गले मिल जाते हैं. दिवाली की तरह होली का त्यौहार भी देश भर में बहुत उत्साह से मनाया जाता है. रंगों के इस उत्सव को हर राज्य के लोग अपने अंदाज से मनाते हैं. चाहे वो बिहार की फगवा होली हो या फिर यूपी की लठमार होली, मथुरा का कई दिनों तक चलने वाला ब्रज उत्सव हो या फिर उत्तराखण्ड की खड़ी होली, सभी के अपने-अपने अंदाज और मान्यताएँ हैं. सिर्फ एक चीज ही है जो सभी तरह की होली में एक जैसी है और वो है मस्ती और रंग. राजस्थान को तो वैसे भी रंगीला राजस्थान के नाम से जाना जाता है तो यहां की होली भी निराली और रंगीन ही होती है. उदयपुर में आज भी होली पुरे राजसी अंदाज में मनाई जाती है. उदयपुर की मेवाड़ रॉयल फेमिली इस त्यौहार को भव्य स्तर पर आयोजित करती है जहां पर एक भव्य जुलुस निकाला जाता है जिसमे सजे धजे घोड़े और शाही बैंड शामिल होते हैं और इसके बाद होलिका दहन किया जाता है. बांसवाड़ा में भील जाति द्वारा भी होली का त्यौहार बहुत जोश खरोश से बनाया जाता है. जो एक बार बांसवाड़ा का होली त्यौहार देख ले वो शायद जिंदगी भर इसे नहीं भूल पायेगा। इस दिन इस जाति के लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा पहनते हैं और पारंपरिक नृत्य करते हैं जो गैर नृत्य के रूप में विश्वभर में प्रसिद्द है. नाच और संगीत के साथ उड़ते हुए रंगों का मेल एक ऐसा समां बाँध देता है जिसे देखने वाले देखते ही रह जाते हैं. हर जिले में होली कई तरीके से खेली जाती है. राजस्थान की माली समुदाय के लोग एक अनोखे ही अंदाज में होली खेलते हुए दिखाई देते हैं. उनकी होली में रंगों और मस्ती का समावेश तो होता है लेकिन एक अनोखी रीत इनकी होली को दूसरों से अलग बनाती है. इस समुदाय के लोग महिलाओं पर रंग फेंकते हैं और बदले में महिलाएं उन्हें गीले कपड़े या फिर छड़ी से मारने दौड़ती है. बस इसी हंसी मजाक में यह रंग बिरंगा त्यौहार मनाया जाता है. कहा जाता है कि परंपराएं ही त्यौहार को खूबसूरत बनाती है. अगर परम्पराएं नहीं होती तो शायद त्योहारों का रंग फीका हो जाता। बीकानेर के व्यास और हर्ष समुदायों के सदस्य पिछले 300 सालों से होली पर एक विशेष परंपरा को पूरे जोश और मस्ती के साथ निभाते हैं. ये लोग इस दिन एक दुसरे को भिगाने के लिए ऊंठ की खाल से तैयार किये गए बड़े से पतीले का उपयोग करते हैं जिसे वहां की भाषा में डोलची कहा जाता है. बस इसी तरह मस्ती मजाक, पकवान और प्यार के मेल से इस खूबसूरत त्यौहार को राजस्थान के लोग मनाते हैं. जानिये, होलिका दहन की पूर्ण कथा आज ही कर ले बैंक से जुड़े सारे काम, तीन दिनों तक बंद रहेंगे बैंक Video : होली की जबरदस्ती, मस्ती नहीं होती