किस तरह तय की जाती है किसी भी समुद्र की सीमा

हर देश की एक निश्चित सीमा होती है, जो बताती है कि वह किस क्षेत्र में फैला हुआ है। आपने अक्सर देशों के बीच जमीनी सीमाओं के बारे में सुना होगा, जैसे भारत और पाकिस्तान की सीमा या भारत और चीन की सीमा। लेकिन क्या आपको पता है कि देशों की जमीनी सीमाओं के साथ-साथ समुद्री सीमाएं भी होती हैं? समुद्र में किसी देश का अधिकार कितनी दूर तक होता है, यह कैसे तय होता है? चलिए, इसे आसान भाषा में समझते हैं।

समुद्री सीमा क्या होती है?: समुद्री सीमा वह क्षेत्र होती है जहां किसी देश का समुद्र में अधिकार होता है। इस सीमा के भीतर वह देश समुद्री संसाधनों का उपयोग कर सकता है, जैसे मछली पकड़ना, व्यापार करना, और अन्य समुद्री गतिविधियां करना। भारत की समुद्री सीमा पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों से मिलती है।

समुद्री सीमा कैसे तय होती है?: समुद्री सीमाओं को तय करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय नियम है, जिसे संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS-1982) कहा जाता है। यह संधि 1994 में लागू हुई और इसके तहत हर देश की समुद्री सीमा को तीन मुख्य हिस्सों में बांटा जाता है:

आधार सीमा (Baseline): यह सीमा किसी देश की जमीनी सतह से 12 नॉटिकल माइल यानी लगभग 22 किलोमीटर तक होती है। इस क्षेत्र में तटीय इलाके और आसपास के द्वीप शामिल होते हैं। यहां उस देश का पूरा अधिकार होता है, जिसका यह हिस्सा है।

क्षेत्रीय सीमा (Territorial Sea): यह सीमा जमीनी सतह से 24 नॉटिकल माइल यानी लगभग 44 किलोमीटर तक फैली होती है। इस क्षेत्र में देश को पूर्ण अधिकार प्राप्त होते हैं। इसका मतलब है कि यहां का पानी और उसके अंदर मौजूद सभी संसाधन उस देश के होते हैं।

एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन (EEZ): यह सीमा सबसे बड़ी होती है, जो 200 नॉटिकल माइल यानी करीब 370 किलोमीटर तक फैली होती है। इस क्षेत्र में देश मछली पकड़ने, समुद्र के नीचे के संसाधनों का दोहन करने, और समुद्री व्यापार करने का अधिकार रखता है।

भारत की समुद्री सीमा कितनी लंबी है?: भारत की समुद्री सीमा लगभग 7,516.6 किलोमीटर लंबी है। इसमें देश का मुख्य तट, लक्षद्वीप द्वीप समूह, और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं। इस सीमा के भीतर भारत का समुद्र में अधिकार है और यहां वह समुद्री संसाधनों का उपयोग करता है।

समुद्री विवाद कैसे हल होते हैं?

अगर दो देशों के बीच समुद्री सीमा को लेकर कोई विवाद उठता है, तो यह UNCLOS-1982 के तहत सुलझाया जाता है। यह अंतरराष्ट्रीय संधि विवादों को सुलझाने के लिए एक मंच प्रदान करती है, जहां दोनों देशों के बीच बातचीत और समझौते से समस्याओं का समाधान किया जाता है।​ समुद्री सीमाएं किसी भी देश के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण होती हैं जितनी उसकी जमीनी सीमाएं। ये सीमाएं देशों को समुद्र में व्यापार और संसाधनों का अधिकार देती हैं, जो आर्थिक विकास में मदद करती हैं। भारत की समुद्री सीमाएं भी बड़ी हैं, और इन्हें सही तरीके से प्रबंधित करना देश की सुरक्षा और विकास के लिए जरूरी है। सही प्रबंधन से हम अपने समुद्री संसाधनों का उचित उपयोग कर सकते हैं और विकास की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

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