हिन्दू धर्म में बहुत से देवी देवता को माना जाता है पुराणों के अनुसार सभी देवी देवता मिलकर सृष्टी का संचालन करते है तथा सभी के कार्य भी भिन्न-भिन्न है इनमे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश को सभी देवों में सबसे मुख्य माना जाता है. तथा महेश यानी भगवान शिव को उनके भक्त बहुत से नामों से जानते है जैसे शंकर, महादेव, भोलेनाथ, महाकाल, गंगाधर, नीलकंठ आदि. भगवान शिव के इन सभी नामों के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य है जिसके कारण उन्हें इन नामों से संबोधित किया जाता है. आज हम आपको भगवान शिव के एक नाम नीलकंठ की कथा से परिचित कराएंगे जिसके कारण उनका नाम नील कंठ पड़ा आइये जानते है भगवान शिव के नाम नीलकंठ से कौन सी कथा जुड़ी है? पुराणों के अनुसार एक बार जब देवताओं की शक्ति क्षीण हुई तब उसे पुनः प्राप्त करने के लिए अमृत की आवश्यकता पड़ी जो समुद्र की गहराइयों में विलीन हो चुका था. जिसे प्राप्त करने के लिए सभी देवों ने त्रिदेवों के परामर्श से समुद्र मंथन करने का निश्चय किया. किन्तु वह अकेले इस कार्य को नहीं कर सकते थे इसके लिए उन्होंने दानवों की साहयता मांगी अमृत पाने की चाह में दानव उनकी सहायता के लिए सज्ज हो गए. तब देव व दानावों ने मिलकर समुद्र मंथन प्रारंभ किया. समुद्र मंथन से बहुत सी अमूल्य वस्तुएं उत्पन्न हुई जिसे देव व दानवों ने आपस में बाँट लिया और अमृत की उत्पत्ति के लिए वह समुद्र का मंथन करते रहे किन्तु अमृत के पूर्व समुद्र से भयंकर विष जिसे हलाहल के नाम से जाना जाता है की उत्पत्ति हुई यह विष इतना घातक था की इसकी एक बूँद सम्पूर्ण स्रष्टि को समाप्त कर सकती थी. इस विष के निकलने से सभी देव व दानव भयभीत हो गए इस विष को धारण करने की किसी भी देव व दानव में क्षमता नहीं थी. तब भगवान शिव ने स्रष्टि को इस घातक विष से बचाने के लिए स्वयं इस विष का पान किया जिसे माता पार्वती ने उनके कंठ में ही रोक दिया. इस विष के प्रभाव से भगवान शिव का कंठ नीला हो गया जिसके कारण उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना गया. भारत में मौजूद है एक ऐसा मंदिर जहाँ लोगो को जाने से लगता है डर विवाह का मुहूर्त निकालने के लिए पंडित लेते है इस चीज का सहारा बालगोपाल को स्थापित करने से पहले ध्यान दें जरा इस बात पर तो इसलिए व्यक्ति को याद नहीं रहता अपना पिछला जन्म