गरीबी देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लिए एक बड़ी परेशानी का कारण बन चुकी है, दुनिया भर के कोने कोने में कोई न कोई भिखारी...मांगने वाले या फिर अपने जीवन को गरीबी में जीने वाले लोग देखने के लिए मिल ही जाते है, लेकिन कभी आपने सोचा है कि भारत की 120 करोड़ की आबादी होने के बाद भी लोग इतने गरीब क्यों है, आप में से कई लोग ऐसे है जो ये बोलेंगे कि भारत में जितनी आबादी है उतनी जॉब्स यहाँ नहीं है. लेकिन मैं कहता हूँ ऐसा नहीं है... अब मेरी इस बात से अधिकांश लोग ऐसे है जो एग्री नहीं करने वाले है. तो आज मैं आपको इस आर्टिकल के माध्यम से अपनी सोच...के साथ लोगों की सोच को थोड़ा सा बदलने का प्रयास करना चाहता हूँ. यदि हम सभी ऐसा सोचने लगें तो भारत में गरीबी को काफी हद तक कम किया जा सकता है. लेकिन अब सोचने वाली बात तो ये है कि आईडिया है क्या और ये आईडिया यदि प्रोसीड किया जाए तो शायद इस समस्या को जड़ से तो नहीं बल्कि कुछ हद काट कम जरूर किया जा सकता है. ये बात हम सभी जानते है कि भारत की 2024 के अनुसार लगभग आबादी 120 करोड़ के पास है. इस 120 करोड़ की आबादी वाले देश में, भीख मांगकर अपना जीवन जीने वाले लोगों की लगभग संख्या जो कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार 4 लाख 13 हजार से अधिक है. जो अपना जीवन इस तरह से जी रहे है. यदि हम मिडिल क्लास के लोगों की संख्या के बारें में बात की जाए तो जो आंकड़ा अभी हमारे पास है वो 2012 के पास है जब भारत में मिडिल क्लास वालों की संख्या लगभग 300 मिलियन या उससे भी कम हो सकती है. वहीं हम बात करें माध्यम से थोड़ा ऊपर के लोगों की संख्या के बारें में वर्ष 1995 से 2021 के आंकड़ों के हिसाब से इनकी आबादी लगभग 338 मिलियन के आस पास थी. इनमें में से जितनी भी संख्या बचती है उनकी श्रेणी अमीर परिवार वालों की हो सकती है. अब ये तो हो गया गरीब लोगों से लेकर अमीर लोगों की आबादी के बारें में बातें, अब बात करते है, आखिर गरीब व्यक्ति गरीब क्यों है? एक भिखारी, भिखारी क्यों है? क्यों इस समस्या से निजात नहीं मिल रही, इस चीज का भी एक बहुत बड़ा कारण है, और आज हम इसी के बारें में बात करने वाले है, तो चलिए जानते है इस बारें में विस्तार से... एक भिखारी, भिखारी क्यों है?: भारत में आज मैं या आप जब भी अपने घर के बाहर निकलते है, तो हर गली कूचे में सड़क के किसी किनारे पर कोई न कोई मांगने वाला आपको मिल ही जाएगा. और इन मांगने वालों की कोई उम्र की सीमा नहीं नहीं होती या इनकी कोई कास्ट या केटेगिरी नहीं होती, इनमें कई मांगने वाले बच्चे, उनसे बड़े, और बुजुर्ग होते है, कई बार तो ऐसा भी देखने के लिए मिलता है कि किसी घर में माँ-बाप के साथ उनके बच्चों के रिश्ते अच्छे नहीं है और उन्ही बच्चों ने अपने बुजुर्ग माँ बाप को घर से निकाल दिया, यही बुजुर्ग अपना जीवन जीने के लिए आमजन पर निर्भर हो जाते है, सड़कों के किनारे पड़े हुए है, लोगों से खाने के लिए मांग रहे है, उनका जीवन तब और भी ज्यादा बदतर हो जाता है. ऐसे ही धीरे धीरे करके इनकी संख्या में इजाफा होने लग जाता है और अपने हालातों से परेशान लोग आज सड़कों पर भीख मांग रहे है, और ये बात तो हम सभी अच्छी तरह से जानते है कि बच्चों को जैसे संस्कार दिए जाएंगे वैसा ही वो करेंगे. आज एक भिखारी जो कि सड़कों पर मंदिरों में, अन्य धार्मिक स्थलों पर लोगों से मांगकर अपना जीवन जी रहे है, उनके पास यदि सही मायने में कहा जाएं तो आम लोगों से ज्यादा उनके पास पैसे होते है, कई बार तो उनके पास से हजारों में रूपए बरामद भी किए जा चुके है, लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि इतना पैसा होने के बाद भी वो भिखारी की श्रेणी में क्यों है, वो इसलिए क्यूंकि उनकी मानसिकता ऐसी हो गई है वो अब आगे नहीं बढ़ना चाहते है, उनका जीवन फुटपाथ पर बीत रहा था और आगे भी उनकी पीढ़ी का जीवन ऐसे ही बीत जाएगा, यदि यही लोग खुद को जागरूक कर लें और अपने जीवन को उचित ढंग से जीने लग जाएं तो भारत में से ज्यादा तो नहीं थोड़े ही सही लेकिन भिखारियों की संख्या भी कम हो जाएगी. एक मिडिल क्लास वाला व्यक्ति क्यों नहीं रहिस: मिडिल क्लास ये शब्द सुनने में ही अच्छा लगता है, जो लोग इस श्रेणी में आते है, उनसे कोई ये भी पूछ लें कि आखिर ये मिडिल क्लास की श्रेणी में क्यों है तो हम आपको इस बारें में बताने वाले है, दरअसल जिस तरह से भारत में भिखारी है जो बस अपना जीवन एक भेंड़ चाल की तरह जी रहे है, ठीक वैसे ही एक बेचारा मिडिल क्लास का इंसान है, जहां एक घर में कमाने वाला इंसान एक और बैठकर खाने वाले 4 या 8 लोग है, कभी कभी तो ये आंकड़ा उससे भी ज्यादा हो जाता है. अब गौर करने वाली बात तो ये है कि एक घर में इतने सारे लोग खाने वाले होंगे होंगे तो वो परिवार संघर्ष ही करेगा. न कि आगे बढ़ेगा, खर्च को कम करने के लिए यदि एक मल्टीपल इनकम सोर्स बना लें यदि ऐसा नहीं भी होता है तो उस व्यक्ति को अपने रोज के खर्चों को थोड़ा कम करना होगा, इससे वो अमीरों की तरह तो जीवन नहीं जी पाएगा लेकिन उसके खर्च और बचत दोनों ही होने लगेंगी, फ़िज़ूल खर्च को यदि कोई भी इंसान कम कर देता है तो उसके घर के खर्च सम्भल जाएंगे, और इस बात में कोई शक नहीं है, जितनी व्यक्ति की आय होती है उसे कई ज्यादा उसके घर के खर्च होते है. लेकिन वही व्यक्ति इस महंगाई के दौर में अपनी जरूरत की चीजों की पूर्ति के अलावा दूसरे खर्च को कम कर दें तो शायद उसे इस समस्या से थोड़ा ही सही निजात जरूर मिल जाएगा. जनसंख्या वृद्धि भी है इसका एक कारण: आज के समय में भारत की कुल आबादी है लगभग 120 करोड़ की और भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जहां इतने लोग जीवन जी रहे है. यदि सही मायनों में देखा जाए तो गरीबी का एक कारण तो भारत में लगातार बढ़ रही जनसँख्या है, एक घर में जितनी मृत्यु दर नहीं है उससे अधिक जन्म लेने वाले बच्चों की दर है, और यदि यही हाल रहा तो भारत में ये बड़ी परेशानी का कारण बन जाएगा. खेर इसके लिए सरकार ने कुछ समय पहले ही आदेश जारी किए थे कि अब हर घर में 2 ही बच्चे हो यदि उससे ज्यादा बच्चे होते है तो उस परिवार को किसी भी तरह से कोई भी सरकारी सुविधाएं नहीं दी जाएंगी. अब यहां सोचने वाली बात तो ये है कि 2 बच्चे पैदा करने वाली सरकार की इस बात को मानाने वाले कितने है, कई लोग तो ऐसे है भी जिन्हे सरकार के इस आदेश की कुछ पड़ी ही नहीं है. उन्हें यदि 3 बच्चे करने है तो वो 3 बच्चे ही करेंगे फिर चाहे उन्हें सरकार से मिल रही सुविधा का लाभ हो या न हो, या फिर कागजों में हेर फेर करवा कर वो सरकारी लाभ भी उठा लेंगे. कम ज्ञान भी है जनसंख्या के बढ़ने का कारण: भारत की 120 करोड़ की आबादी में अधिकांश परिवार ऐसे है जिन्हे बच्चों को स्कूली शिक्षा नहीं मिल रही है, अब तो हाल ये है कि सरकारी स्कूल भी धीरे धीरे कम होते जा रहे है, और कम भी क्यों न हो जब लोग बच्चों को शिक्षा के लिए स्कूल ही नहीं भेजेंगे तो स्कूल कहाँ से चलाएंगे. वहीं प्राइवेट स्कूलों में लोगों की लम्बी कतार लगी हुई है, जहां हर कोई अपने बच्चों को बड़े से बड़े इंग्लिश मीडियम स्कूल में भेजना चाहते है, क्यूंकि आज भारत में भी हिंदी से ज्यादा इंग्लिश का चलन होता जा रहा है. आज जहां भी नजर घुमाओं हिंदी मीडियम स्कूल कम और इंग्लिश मीडियम स्कूल ज्यादा देखने के लिए मिल रहे है, मातृभषा का तो भारत से जैसे महत्व ही कम होता जा रहा है. लोगों को आगे बढ़ना है इसलिए वो अपने बच्चों को भारत के बड़े से बड़े स्कूल में पढ़ा रहे है, जब भारत के स्कूल उन्हें कम पड़ जाते है तो यही लोग अपने बच्चों को लंदन या किसी अन्य देश में पढ़ने के लिए भेज देते है. आज अधिकांश स्कूलों में भी हिंदी और संस्कृत का महत्व खत्म होता जा रहा है. और सरकारी स्कूलों के बंद होने से एक गरीब का बच्चा पढ़ ही नहीं पा रहा है, तो भारत में से गरीबी खत्म कैसे होगी. गौर करने वाली बात: यदि कुछ भी करके किसी ने इस चीज को बदलने के बारें में मन बना भी लिया या सरकार ने कोई नया आदेश जारी कर भी कर दिया तो इस आदेश को कितने लोग फॉलो करेंगे. उदहारण के तौर पर- यदि 120 करोड़ की आबादी में से 2 या 3 करोड़ लोग भी किसी एक व्यक्ति को उधार के तौर पर ही सही 1 रूपए का UPI या किसी भी माध्यम से उस तक ये पैसे पहुंचाते है तो उस एक व्यक्ति के पास लगभग 1 करोड़ रूपए होंगे, अब इसी तरह से इस काम को एक साइकिल के तौर पर चलाने का कार्यक्रम किया जाए तो हर इंसान के पास 1 करोड़ न सही लेकिन 90 लाख तो होंगे ही. इसे आप एक तरह का इन्वेस्टमेंट और नया बिज़नेस भी समझ सकते है, इससे लोगों के सर पर छत और खाने के लिए भरपूर राशन के साथ साथ बच्चों को स्कूल भेजने के लिए भी पैसे होंगे. लेकिन यदि आप इस बारें में किसी से भी बात करते है तो सबसे पहली बात ये की लोग आपकी बात सुनेंगे नहीं, यदि उनमें में से कुछ सुन भी लेते है तो वो करेंगे नहीं क्यूंकि उनका ये मानना है कि हम ऐसा क्यों करें, शायद हो सकता है कि वो अपनी जगह पर सहीं भी हो लेकिन शुरुआत करने में क्या हर्ज है, और उन्ही में से कुछ लोग ऐसे भी जो शुरुआत करने के बारें में सोचेंगे तो लेकिन किसी न किसी कारण ऐसा नहीं करेंगे. हां लेकिन पार्टी करना होगा तो ये पैसे निकाल लेंगे लेकिन बिज़नेस पर्पस या फिर किसी भी माध्यम से लोगों की मदद के लिए आगे नहीं आएँगे. क्यों जहां सोच छोटी होती है वहां विकास नहीं होता, और जहां विकास होता है वहां छोटी सोच का कोई काम नहीं होता.