श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के आतंकवादी यासीन मलिक, जिसे भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने और अन्य अपराधों का दोषी ठहराया गया था, ने हाल ही में दावा किया है कि उसने 1994 से 'गांधीवादी प्रतिरोध' का तरीका अपनाया था। उसने UAPA ट्रिब्यूनल के सामने दायर हलफनामे में अपने संगठन पर लगे प्रतिबंध की समीक्षा की मांग की है। यासीन मलिक ने दावा किया कि उसने 30 साल पहले 'सशस्त्र संघर्ष' यानी आतंकवाद को छोड़ दिया था और अब वह 'संयुक्त स्वतंत्र कश्मीर' के लिए गांधी की तरह अहिंसक तरीकों से प्रयास कर रहा है। UAPA ट्रिब्यूनल ने हाल ही में JKLF पर लगे प्रतिबंध को अतिरिक्त 5 वर्षों के लिए बरकरार रखा है। केंद्र सरकार ने न्यायाधिकरण को यह स्पष्ट किया कि यासीन मलिक और उसके संगठन ने हिंसक गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, खासकर 2008 से 2016 के बीच। इन वर्षों के दौरान जम्मू-कश्मीर में हुए दंगों और आतंकवादी गतिविधियों में भी उनकी भूमिका अहम रही। यासीन मलिक का आपराधिक इतिहास बेहद गंभीर है। मई 2022 में, उसे आतंकी फंडिंग के आरोप में विशेष NIA अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अदालत ने उसे गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत दोषी ठहराया, और उसने खुद कबूल किया था कि वह आतंकी फंडिंग में शामिल था। NIA ने मलिक के लिए मौत की सजा की मांग की थी, लेकिन अदालत ने उसे दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई, साथ ही पांच अन्य मामलों में 10-10 साल की सजा भी सुनाई गई। यासीन मलिक का आतंकवाद से जुड़ा इतिहास काफी क्रूर है। 1989 में उसने तत्कालीन गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद का अपहरण किया था, जिसके बदले में पांच खूंखार आतंकवादियों को रिहा किया गया। हालाँकि, इस किडनेपिंग पर सवाल भी उठाते हैं कि, इसमें आतंकियों को बचाने के लिए यासीन मलिक और मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने मिलीभगत की थी। इसके अलावा, 1990 में भारतीय वायुसेना के 4 निहत्थे अफसरों को भी यासीन मलिक और उसके गुर्गों ने गोलियों से भून दिया था। इस घटना के दौरान आतंकियों ने बस का इंतजार कर रहीं दो कश्मीरी महिलाओं की भी हत्या की और उनकी लाशों के सामने जिहादी नारे लगाते हुए डांस किया। JKLF के आतंकियों ने कश्मीरी पंडितों पर भी अत्याचार किए, जिनमें जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या शामिल थी। जस्टिस गंजू ने JKLF के आतंकवादी मकबूल भट्ट को मौत की सजा सुनाई थी, जिसके बाद उन्हें निशाना बनाया गया। इन सबके बावजूद, यासीन मलिक लंबे समय तक बिना किसी सख्त कार्रवाई के खुला घूमता रहा। 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बाकायदा उसे प्रधानमंत्री आवास में बुलाया, और दोनों की हंसती-मुस्कुराती तस्वीर भी सामने आई थी, जिससे देश में भारी विवाद खड़ा हो गया था। कुख्यात आतंकवादी हाफिज सईद के साथ एक मंच साझा करने के बावजूद, कई पत्रकार और लेखकों ने उसे एक 'युवा नेता' के रूप में दिखाने की कोशिश की। विवादित लेखिका, अरुंधति रॉय आतंकी यासीन का हाथ थामकर घूमती नज़र आईं तो, जाने माने पत्रकार रविश कुमार ने 2013 में उसे 'युथ आइकॉन' कहते हुए मंच दिया, जबकि इससे पहले वह खुलेआम भारतीय सैनिकों पर हमला करने की बात स्वीकार कर चुका था। हालांकि, जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली, तो यासीन मलिक का संगठन JKLF आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया गया और मलिक को जेल में डाल दिया गया। वर्तमान में, उसे आजीवन कारावास की सजा मिली हुई है, लेकिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) उसके लिए फांसी की मांग कर रही है। न्यायिक सुनवाई के दौरान यासीन मलिक ने खुद को गांधीवादी बताया, लेकिन सवाल ये है कि, अगर गांधीवादी ऐसा होता है, तो आतंकी कैसा होता होगा ? कुत्ते को पीछे भागता देख दौड़ी मासूम, हुई दर्दनाक मौत छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद पर कमरतोड़ प्रहार, एक ही दिन में 31 नक्सली ढेर कुपवाड़ा में घुसपैठ की कोशिश कर रहे दो आतंकियों को भारतीय सेना ने किया ढेर