नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी लोक सेवक के खिलाफ जांच और मुकदमा चलाने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को पहले सरकार से मंजूरी लेनी होगी। इस मामले में जस्टिस अभय ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने ईडी की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने दो आईएएस अधिकारियों के खिलाफ ईडी द्वारा दायर आरोपपत्र पर संज्ञान आदेश को रद्द कर दिया था। अदालत का कहना था कि सीआरपीसी की धारा 197(1) के प्रावधानों का पालन करना जरूरी है, जो कि पीएमएलए के तहत मनी लॉन्ड्रिंग मामलों पर भी लागू होते हैं। सीआरपीसी की धारा 197(1) के तहत, अगर किसी न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट, या लोक सेवक पर उनके कर्तव्यों का पालन करते हुए अपराध का आरोप लगता है, तो उन पर कार्यवाही के लिए सरकार की मंजूरी अनिवार्य है। यदि यह लोक सेवक केंद्र सरकार के अधीन है, तो मंजूरी केंद्र सरकार से ही प्राप्त की जाएगी, जबकि राज्य सरकार के अधीन अधिकारी के मामले में राज्य सरकार से मंजूरी लेनी होगी। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 197(1) का उद्देश्य सरकारी अधिकारियों को उनके सरकारी कर्तव्यों के दौरान किए गए कार्यों के लिए अभियोजन से सुरक्षा प्रदान करना है। कोर्ट ने कहा कि जब तक पीएमएलए में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो सीआरपीसी की धारा 197(1) के विपरीत हो, तब तक इस सुरक्षा का अधिकार लोक सेवकों को मिलना चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि यह प्रावधान ईमानदार और निष्ठावान अधिकारियों को उनके कर्तव्यों का निर्वहन करते समय सुरक्षा देने के उद्देश्य से है। हालांकि, इस सुरक्षा का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता; उचित मंजूरी के बाद ही अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। 'अडानी का प्रोजेक्ट रद्द करूँगा..', घोषणापत्र में उद्धव का वादा, धारावी संवारने का है प्लान साध्वी प्रज्ञा की हो गई ऐसी हालत, बोली- 'जिंदा रही तो कोर्ट जाउंगी...' 'कॉल डिटेल निकालकर दबाव बना रही पुलिस', डिप्टी CM शुक्ल से बोले पूर्व गृहमंत्री