सोशल मीडिया के चूल्हे इन दिनों खिचड़ी पर खूब तड़का मार रहे हैं. फुसफुसाहट है कि खिचड़ी राष्ट्रीय आहार घोषित हो सकती है, इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो नहीं पता, लेकिन ये जरूर पता है कि खिचड़ी को अगर राष्ट्रीय आहार का दर्जा मिला तो खाने की अन्य डिशेज बुरा मान जाएंगी. अब सुनें इन खानों के मन की बातें छोले-भटूरे : ख़बरों में चल रही सनसनी को सुनकर इधर छोले भटूरों का मुँह फूला हुआ है. उनका कहना है कि बर्थ-डे पार्टी से लेकर लेडीज संगीत तक, हम ही नाक बचाते हैं और आज जब हिसाब बराबर करने की बारी आई तो हमसे ज्यादा तवज्जों उस खिचड़ी को दी जा रही है, जो बीमारी के दिनों में खाई जाती है. दाल-चावल : उत्तर भारतीय लोगों का मनपसंद खाना, पेट खराब हो या मन खराब, दाल चावल खाकर पूरा सिस्टम टना-टन हो जाता है. दाल-चावल का कहना है कि हमें पूरे हफ्ते रिपीट किया जाता है लेकिन आज जब राष्ट्रीय आहार की बात आई तो हफ्ते में एक दिन बनने वाली खिचड़ी को आगे किया जा रहा है. दाल चावल ने इस फैसले की कड़ी निंदा की है. रोटी सब्जी : रोटी सब्जी तो गुस्से में गरम हुए पड़े हैं, उनका कहना है कि नाश्ते में हम, दोपहर के खाने में भी हम, रात के खाने में भी हमें ही खाकर डकार मारी जाती है. लेकिन आज राष्ट्रीय आहार की बात आई तो खिचड़ी का नाम आगे किया जा रहा है, ये तो नाइंसाफी है. डोसा : साउथ इंडिया की तरफ से डोसा की नाराजगी भी सुनने को मिल रही है. डोसा परिवार को लगता है कि खिचड़ी की जगह ये दर्जा इडली को भी दिया जा सकता है. यहाँ आने पर ऐसा होता है "Come Mingle Go Single" दुनिया की सबसे ऊँची आउटडोर एलेवेटर इन जगहों पर मुँह भर-भर कर हिंदी निकालते हैं लोग