हम जीते तो 1000 देंगे, पहले आप 40 लाख दो..! आतिशी का अनोखा चुनावी अभियान, आज नामांकन

नई दिल्ली: दिल्ली की राजनीति में आज का दिन खास है क्योंकि कालकाजी विधानसभा क्षेत्र से आम आदमी पार्टी (AAP) की उम्मीदवार और मुख्यमंत्री पद की दावेदार आतिशी अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगी। नामांकन से पहले उन्होंने कालकाजी मंदिर में पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद लिया और गिरी नगर गुरुद्वारे में अरदास की। इसके बाद उन्होंने नामांकन रैली की शुरुआत की। आतिशी ने कालकाजी की जनता से अपने भावनात्मक जुड़ाव को रेखांकित करते हुए कहा, "पिछले पांच सालों में मुझे इस क्षेत्र से अपार प्यार और समर्थन मिला है। मुझे भरोसा है कि यह प्यार और आशीर्वाद मुझ पर बना रहेगा।"

लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के साथ कुछ सवाल भी खड़े हो रहे हैं। आतिशी ने हाल ही में चुनाव खर्च जुटाने के लिए क्राउडफंडिंग की अपील की थी, जिसमें उन्होंने 40 लाख रुपये की जरूरत बताई। इसके जवाब में पिछले 24 घंटों में उन्हें 18 लाख 56 हजार रुपये का चंदा मिला है। यह रकम 422 दानदाताओं से आई, जिसमें हर डोनेशन 100 या 1000 रुपये तक का बताया गया। 

इस अपील ने कई लोगों के बीच बहस छेड़ दी है। एक तरफ AAP यह दावा करती है कि वह गरीबों के लिए सरकार बनाना चाहती है और उनके जीवन को आसान बनाने के लिए योजनाएँ लाएगी, जैसे महिलाओं को 1000 रुपये मासिक भत्ता और बिजली-पानी मुफ्त करने का वादा। वहीं, दूसरी ओर, चुनाव लड़ने के लिए वही गरीब जनता से 40 लाख रुपये जुटाने की अपील करना सवाल खड़े करता है। आम आदमी पार्टी का यह भी दावा है कि वे किसी बड़े उद्योगपति या धनाढ्य से चंदा नहीं लेते। लेकिन जब आम आदमी की बात आती है, तो 100 रुपये का न्यूनतम दान भी एक मध्यमवर्गीय या गरीब परिवार के लिए एक दिन की सब्जी और दूध खरीदने जैसा होता है।

सवाल यह भी उठता है कि AAP पार्टी फंड से आतिशी को चुनाव लड़ने के लिए पैसा क्यों नहीं दे रही? क्या पार्टी के पास इस तरह के फंड की कमी है, या फिर यह जानबूझकर जनता से चंदा लेने की रणनीति है? आतिशी ने खुद को एक साधारण उम्मीदवार के तौर पर पेश किया है जो आम जनता से जुड़ाव रखती हैं। लेकिन आलोचकों का कहना है कि अगर वे जनता के लिए काम करना चाहती हैं, तो जनता के पैसे पर चुनाव क्यों लड़ रही हैं? क्या उनकी पार्टी, जो दिल्ली में सत्ता में है, उन्हें आर्थिक मदद नहीं कर सकती? और अगर नहीं, तो क्या आतिशी के पास निजी तौर पर इतना पैसा भी नहीं है कि वे चुनाव का खर्च उठा सकें? 

यह भी ध्यान देने योग्य है कि वे तो पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी फंड ले सकती हैं, जिनके घर में कथित तौर पर 8-8 लाख के तो परदे ही लगे हैं। तो क्या आतिशी अपने नेतृत्व से मदद नहीं मांग सकतीं?  यह पूरा मामला यह सोचने पर मजबूर करता है कि यह चुनाव वास्तव में जनता की सेवा के लिए लड़ा जा रहा है या जनता से ही पैसे जुटाने के लिए। यह विरोधाभास AAP की छवि पर असर डाल सकता है। आम आदमी की मदद के वादे के साथ शुरू हुई पार्टी अब आम आदमी से ही मदद की उम्मीद कर रही है, जो कि उसके समर्थकों के लिए भी असहज सवाल पैदा कर रही है।  

आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता इन सवालों को कैसे लेती है और क्या यह क्राउडफंडिंग रणनीति चुनावी राजनीति में नैतिकता और पारदर्शिता के नए मानदंड स्थापित करेगी या इसे लेकर और विवाद खड़े होंगे। 

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