नई दिल्ली : जब मजदूर यूनियनों का जबरदस्त दबाव बढ़ता है, तो सरकार को अपने फैसले बदलने पड़ते हैं . ऐसा ही निजी क्षेत्र को अपने कर्मचारियों को नौकरी से हटाने व कंपनी को बिना मंजूरी बंद करने के संबंध में अधिकार दिए जाने से जुड़े इंडिस्ट्रियल रिलेशंस कोड बिल के मामले में सरकार ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं .सरकार ने अब इस बिल को ठन्डे बस्ते में दाल दिया है. सरकार ने यह यू टर्न मजदूर यूनियनों के तीखे विरोध के कारण लिया है . उल्लेखनीय है कि इस प्रस्तावित बिल में यह प्रावधान किया गया था कि 300 तक कर्मचारी वाली कंपनी को अपने श्रमिकों को नौकरी से हटाने व कंपनी को बंद करने के संबंध में सरकार से अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी फ़िलहाल यह व्यवस्था 100 तक कर्मचारी वाली कंपनियों पर लागू है. इस प्रस्ताव का अन्य यूनियनों के साथ भारतीय मजदूर संघ ने भी विरोध किया था. श्रम संगठनों के विरोध के धरने के बाद श्रम सुधार से संबंधित मंत्रियों की समिति से चर्चा हुई थी .इसके बाद नोटबंदी एवं जीएसटी के कारण नौकरियां जाने के आरोप झेल रही सरकार को रोजगार के बिंदु पर अपना निर्णय बदलना पड़ा . बता दें कि यह सब होने के बाद भी सरकार चाहती है कि अपने यहां इज आॅफ डूइंग बिजनेस के लिए स्थिति अनुकूल बनाने के लिए ऐसे सुधार स्वयं कर सकती हैं.केंद्र सरकार ने मुआवजा बढ़ाने स्थिर रखने का निर्णय लिया है.यही नहीं सरकार मजदूर संगठन कानून 1926, औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) कानून 1946 एवं औद्योगिक विवाद कानून 1947 को मिलाकर एक कानून बनाने पर भी विचार कर रही है . यह भी देखें पाक मजदूर को महंगी पड़ी हिंदुस्तान की तारीफ़ EPF पेंशनर्स को मेडिकल सुविधा पर कल घोषणा संभावित