नई दिल्ली: आज मंगलवार (14 मई) को सर्वोच्च न्यायालय ने एक मीडिया साक्षात्कार में कोर्ट द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों पर अपनी टिप्पणी के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के अध्यक्ष डॉ आरवी अशोकन द्वारा मांगी गई माफी पर असंतोष व्यक्त किया। डॉ अशोकन, जो अपने खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग करने वाली पतंजलि आयुर्वेद द्वारा दायर एक आवेदन पर जारी नोटिस के अनुसार व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित थे , ने न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ से बिना शर्त माफी मांगी। हालाँकि, पीठ उनके आचरण से खुश नहीं थी। न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि, "डॉ अशोकन, आपके अनुभव के आधार पर, हमें आपसे जिम्मेदारी की अधिक भावना की उम्मीद थी।" इसको आगे बढ़ाते हुए न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा कि IMA अध्यक्ष ने वही किया है जो पतंजलि के संस्थापकों ने किया था, जस्टिस ने अशोकन के आचरण को "दुर्भाग्यपूर्ण" बताया। जस्टिस कोहली ने कहा कि डॉ अशोकन के आचरण पर पतंजलि की तरह ही व्यवहार करना होगा। यह याद किया जा सकता है कि न्यायालय ने पतंजलि और उसके संस्थापकों द्वारा न्यायालय को दिए गए वचन का उल्लंघन करने के लिए मांगी गई माफी को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि, "हमें आपकी माफी के लिए वही कहना है, जो हमने पतंजलि के लिए कहा था। यह एक विचाराधीन मामला है जिसमें आप पक्षकार थे। आपके वकील टिप्पणियों को हटाने के लिए कह सकते थे। लेकिन आप प्रेस में चले गए। हम बिल्कुल भी खुश नहीं हैं। हम इतनी आसानी से माफ नहीं कर सकते।'' पीठ ने डॉ अशोकन की माफी की वास्तविकता पर सवाल उठाते हुए पूछा कि उन्होंने अदालत में आने से पहले सार्वजनिक माफी क्यों नहीं जारी की। जवाब में, डॉ अशोकन ने कहा कि वह संस्थान को सर्वोच्च सम्मान देते हैं। बाद में, न्यायाधीशों ने IMA के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त की, उन्होंने ने कहा कि, "मिस्टर पटवालिया, हम इस स्तर पर आपके मुवक्किल द्वारा मांगी गई माफी को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं।" वकील पटवालिया ने आग्रह किया कि, "हमें एक मौका दीजिए, हम कदम उठाएंगे। उन्होंने गलती की है।" वकील ने कहा कि डॉ. अशोक एक सम्मानित डॉक्टर हैं। इस पर जस्टिस कोहली ने कहा कि, "बतख के लिए जो सॉस है, वही हंस के लिए भी सॉस है।" सुप्रीम कोर्ट ने IMA को फटकारते हुए कहा कि, ''अगर यही काम दूसरा पक्ष (पतंजलि) करता, तो आप क्या करते ? आप दौड़े-दौड़े अदालत आते। आप ऐसे ही सोफे पर बैठकर अदालत के बारे में ऊलजलूल नहीं बोल सकते।'' सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि, ''आप ही हैं जिन्होंने दूसरे पक्ष (पतंजलि) को अदालत में घसीटा और कहा कि वे आपको बदनाम कर रहे हैं, लेकिन जब आपकी परीक्षा ली जाती है,, तब?'' इसके बाद जब डॉ अशोकन ने माफ़ी मांगी, तो कोर्ट ने कहा कि 'आपने सार्वजनिक रूप से माफ़ी क्यों नहीं मांगी ?'' उन्होंने आगे कहा कि पीठ डॉ अशोकन की पेशेवर क्षमता पर सवाल नहीं उठा रही थी, बल्कि केवल विचाराधीन कार्यवाही पर उनकी टिप्पणियों के बारे में चिंतित थी। यह घटनाक्रम IMA द्वारा पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ उसके "भ्रामक" दावों और विज्ञापनों के लिए दायर एक मामले में हुआ था। कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद, इसके संस्थापकों बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ कोर्ट को दिए गए वादे का उल्लंघन करते हुए भ्रामक चिकित्सा विज्ञापन प्रकाशित करना जारी रखने के लिए अवमानना कार्यवाही शुरू की थी। पिछले महीने एक सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने IMA पर निशाना साधते हुए उसे अपने सदस्यों (एलोपैथिक डॉक्टरों) की अनैतिक प्रथाओं के संबंध में शिकायतों पर कार्रवाई करके "अपना घर व्यवस्थित करने" के लिए कहा था। इसके बाद, डॉ अशोकन ने मीडिया में एक इंटरव्यू दिया, जहां उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की आलोचना करते हुए उसे दुर्भाग्यपूर्ण बता दिया था और कहा था कि अदालत के बयानों ने प्राइवेट डॉक्टरों का मनोबल गिराया है। इसके जवाब में, पतंजलि ने अदालत के खिलाफ उनकी "अपमानजनक" टिप्पणियों के लिए डॉ अशोकन के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए लंबित कार्यवाही में एक आवेदन दायर किया। पिछले हफ्ते (7 मई) कोर्ट ने उस अर्जी पर IMA अध्यक्ष को नोटिस जारी किया था। बाबा रामदेव विज्ञापन मामला क्या है :- दरअसल, बाबा रामदेव ने अपनी कुछ दवाओं का विज्ञापन करते हुए ये कह दिया था कि, ये भ्रान्ति है कि शुगर और BP जैसी बीमारियों का स्थायी इलाज नहीं है, (उनकी) आयुर्वेदिक दवाओं से ये पूरी तरह ठीक हो सकता है। अब मॉर्डन मेडिकल साइंस का ये दावा है कि डायबिटीज़ (शुगर) एक आजीवन रहने वाली बीमारी है और इसे जीवन भर दवा खाकर कंट्रोल किया जा सकता है, बढ़ने पर इन्सुलिन लिया जा सकता है, लेकिन पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता। आधुनिक मेडिकल साइंस का मानना है कि शुगर के मरीज को आजीवन दवाएं या इन्सुलिन लेनी ही होती है। हाँ, शुरूआती चरण में इसे खान-पान पर नियंत्रण रखकर कंट्रोल किया जा सकता है। अब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) बाबा रामदेव के इसी दावे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा कि उन्होंने अपनी आयुर्वेदिक दवा बेचने के लिए झूठा दावा किया। सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव को फटकार लगाई कि वो एलॉपथी के खिलाफ नहीं बोल सकते और ऐसे भ्रामक विज्ञापन नहीं कर सकते। बाबा रामदेव ने सुप्रीम कोर्ट में माफ़ी मांग ली, जिसे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया और सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगने को कहा। जिसके बाद पतंजलि आयुर्वेद ने 67 अख़बारों में लिखित माफ़ी छपवाई, तो कोर्ट ने उन अख़बारों की कतरन पेश करने को कहा था। पतंजलि ने वो भी पेश कर दी। इस मामले में उत्तराखंड सरकार ने पतंजलि के 14 उत्पादों के लाइसेंस कैंसिल कर दिए थे। हालाँकि, गौर करने वाली एक बात ये भी है कि, हर एलॉपथी दवाई का साइड इफ़ेक्ट होता ही है, आप किसी भी गोली का नाम लिखकर इंटरनेट पर सर्च करेंगे, तो इसकी जानकारी मिल जाएगी। अब जीवन भर चलने वाली गोलियों का मरीज के शरीर पर कितना और क्या साइड इफ़ेक्ट होगा ? क्या IMA ने ये कभी बताया है ? दिल्ली-लखनऊ हाईवे पर दर्दनाक हादसा, दो वाहनों की भिड़ंत में 6 लोगों की दुखद मौत बाबा विश्वनाथ की नगरी से पीएम मोदी ने तीसरी बार दाखिल किया नामांकन, पहले लिया कालभैरव का आशीर्वाद 'लोगों को पसंद नहीं आया 370 हटाने का फैसला..', श्रीनगर का मतदान प्रतिशत देखकर बोलीं महबूबा मुफ़्ती