इंदौर: गुड़ी पड़वा 'हिन्दू नववर्ष' के रूप में पूरे भारत में मनाया जाता है. चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा कहा जाता है. प्रतिपदा से तात्पर्य है कि इसे चन्द्रमा के उज्वल चरण का पहला दिन माना जाता है. चैत्र माह से हिन्दूओं का नववर्ष आरंभ होता है. इस त्यौहार को मनाने के पीछे कई मान्यताएँ विद्यमान हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड की रचना की थी और मानव सभ्यता का आरम्भ हुआ था. इस दिन सूर्य को अर्ध्य देने का विशेष महत्व माना जाता है. इस दिन पूरे भारत में पूरनपोली और श्रीखंड बनाने की प्रथा प्रचलित है. इस विशिष्ट अवसर पर सूर्योपासना के साथ आरोग्य, समृद्धि और पवित्र आचरण की कामना की जाती है. गुड़ी पड़वा के दिन घर-घर में विजय के प्रतीक स्वरूप गुड़ी सजाई जाती है. उसे नवीन वस्त्राभूषण पहना कर शक्कर से बनी आकृतियों की माला पहनाई जाती है. पूरनपोली और श्रीखंड का नैवेद्य चढ़ा कर नवदुर्गा, श्रीरामचन्द्र एवं उनके भक्त हनुमान की विशेष आराधना की जाती है. इस दिन शरीर पर बेसन और तेल का उबटन लगाकर शुद्ध होते हैं व पवित्र होकर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर ब्रह्मा जी के मंत्रों का उच्चारण करके पूजा करते हैं. एक प्राचीन मान्यता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही भगवान राम माता जानकी को लेकर अयोध्या लौटे थे. इस दिन पूरी अयोध्या में भगवान राम के स्वागत में विजय पताका के रूप में ध्वज लगाए गए थे. इसे ब्रह्म ध्वज भी कहा जाता है. गुड़ी पड़वा के इस पर्व को अगर वैज्ञानिक नज़रिये से देखा जाए तो इस दिन सूर्य किरणों में तेजतत्व एवं प्रजापति तरंगें अधिक मात्रा में कार्यरत रहती है. सूर्योदय के समय इन तरंगों से प्रक्षेपित चैतन्य अधिक समय तक वातावरण में बना रहता है. यह चैतन्य जीवित कोशिका-कोशिकाओं में संग्रहित होता है और आवश्यकता के अनुसार उपयोग में लाया जाता है. अत: सूर्योदय के उपरांत 5 से 10 मिनट में ही ब्रह्म ध्वज को खडाकर उसका पूजन करने से इंसानो को सूरज की तरंगो का अत्यधिक लाभ मिलता है. भगवान की स्तुति करने का सबसे उत्तम समय है ये चैत्र नवरात्रि: जानिए माँ दुर्गा के 108 नाम और उनके अर्थ