शिव पुराण में छः वस्तुओं के पूजन का महत्व

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार महाशिवरात्रि का त्योहार प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को अर्थात अमावस्या से एक दिन पहले वाली रात को मनाया जाता है.ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान शंकर रूद्र के रूप में प्रजापिता ब्रह्मा के शरीर से प्रकट हुए थे एक मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान शिव का पार्वतीजी से विवाह हुआ था . इन सब कारणों से महाशिवरात्रि का हिंदू धर्मग्रंथों में बहुत महत्व है.

यह तो सभी जानते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन सुबह से ही शिवमंदिर में दर्शन हेतु कतारें लग जाती हैं .शिव पूजन हेतु लोग जल से तथा दूध से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं . कुछ लोग गंगाजल से भी शिवलिंग को स्नान कराते हैं . दूध, दही, घी, शहद और शक्कर के मिश्रण से भी स्नान कराया जाता हैं .शिव लिंग पर चन्दन लगाकर उन्हें फूल, बिल पत्र अर्पित किये जाते हैं. धूप और दीप से भगवान शिव की आरती की जाती है .लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन छः वस्तुओं से शिव पूजन करने का क्या महत्व है. इसका विवरण शिव पुराण में मिलता है.

दरअसल शिव पूजन में भक्तगण बिल पत्र से पानी शिव लिंग पर चढ़ाते है उसका आशय यह है कि शिव की क्रोध की अग्नि को शान्त करने के लिये ठन्डे पानी व बिलपत्र से स्नान कराया जाता है जिसे आत्मा की शुद्धि का प्रतीक माना गया है.इसी तरह शिव स्नान के बाद शिव लिंग पर चन्दन का टीका लगाना शुभ भाव जाग्रत करने का प्रतीक माना गया है. जबकि फल, फूल चढ़ाने का मतलब शिव के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करना है कि हम पर भगवान शिव की कृपा बनी रहे.

धूप जलाने से सब अशुद्ध वायु,कीटाणु, गंदगी का नाश करने का प्रतीक है.साथ ही हमारे सब संकट, कष्ट,दुःख दूर रहे, सब सुखी रहें यह कामना की जाती है.वहीं शिव पूजन में दीपक इसलिए जलाया जाता है ,ताकि शिव हमें ज्ञान दें,प्रकाश दें,ताकि हम सदा उन्नति के पथ पर निरंतर आगे बढते रहें. इसी तरह पूजन में प्रयुक्त पान का पत्ता संतुष्टि भाव का परिचायक है .अर्थात प्रभु ने हमें जो दिया है हम उसके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते है.मन्दिर की घण्टी बजाना अपनी आत्मा को सतर्क करने का संकेत माना गया है.

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