इमरान प्रतापगढ़ी की कलम से

ज़माने पर भरोसा करने वालों, भरोसे का ज़माना जा रहा है ! तेरे चेहरे में एैसा क्या है आख़िर, जिसे बरसों से देखा जा रहा है !!!

राह में ख़तरे भी हैं, लेकिन ठहरता कौन है, मौत कल आती है, आज आ जाये डरता कौन है ! तेरी लश्कर के मुक़ाबिल मैं अकेला हूँ मैं मगर, फ़ैसला मैदान में होगा कि मरता कौन है !!!

ख़बसूरत मौसम, हर चीज़ कुहरे में लिपटी हुई गुमनाम सा सफ़र, अजनबी रास्ते शुक्रिया अपने बंजारेपन का.

उनके हिस्से में किले मेरे, हिस्से में छप्पर में आते हैं….! अफ़सोस मगर आतंक के हर, इलज़ाम मेरे सर आते हैं….!!

हमने उसके जिस्म को फूलों की वादी कह दिया। इस जरा सी बात पर हमको फंसादी कह दिया, हमने अकबर बनकर जोधा से मोहब्बत की। मगर सिरफिरे लोगों ने हमको लव जिहादी कह दिया.

ये ताजमहल ये लालकिला, ये जितनी भी तामीरें हैं, जिन पर इतराते फिरते हो, सब पुरखों की जागीरें हैं!! जब माँगा वतन ने खून, बदन का सारा लहू निचोड़ दिया, अफ़सोस मगर इतिहास ने ये, किस मोड़ पे लाके छोड़ दिया !!

राह में ख़तरे भी हैं, लेकिन ठहरता कौन है, मौत कल आती है, आज आ जाये डरता कौन है ! तेरी लश्कर के मुक़ाबिल मैं अकेला हूँ मैं मगर, फ़ैसला मैदान में होगा कि मरता कौन है !!!

पिता की अंतिम इच्छा पर जब युवक बना अरबपति

न डॉलर और न पाउंड ये है दुनिया की सबसे महंगी मुद्रा

इन जगह इन चीजों के पहनावे पर पाबन्दी

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