बांग्लादेश में दुर्गा-पूजा से पहले 16 मूर्तियों की गर्दनें काटीं, अगला नंबर 'भारत' का होगा..?

ढाका: 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना सरकार का पतन हुआ और उन्हें इस्तीफा देकर भारत में शरण लेनी पड़ी। इसके बाद से बांग्लादेश में कट्टरपंथियों की कार्यवाहक सरकार के रूप में कथित शांति के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले मोहम्मद यूनुस ने देश की सत्ता संभाली। परंतु, यह सरकार हिंदुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों पर आंखें मूंदे हुए है और इन घटनाओं को दबाने की कोशिश कर रही है। हिंदू समुदाय पर लगातार बढ़ते हमले, विशेष रूप से धार्मिक स्थलों पर, इन कट्टरपंथियों के बढ़ते प्रभाव और हिंदुओं के लिए बिगड़ते माहौल की गवाही दे रहे हैं।

हाल ही में 28 सितंबर और 1 अक्टूबर 2024 को बांग्लादेश के राजशाही डिवीजन के पबना जिले में स्थित दो दुर्गा पूजा मंडपों पर हमले किए गए। सुजानगर उपजिला के ऋषिपारा बरवारी और मानिकदी पालपारा मंडपों में दुर्गा और अन्य हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ दिया गया। ये हमले हिंदुओं के लिए एक नए डर का वातावरण बना रहे हैं। स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों से बार-बार अपील करने के बावजूद हमलों के वक्त कोई भी सुरक्षा बल नहीं पहुंचा। बाद में पुलिस और सेना के अधिकारी केवल घटनास्थल का दौरा कर औपचारिकता निभाने आए।

आश्चर्यजनक बात यह है कि दुर्गा पूजा का त्योहार, जो बांग्लादेश में 9 अक्टूबर 2024 से शुरू होने वाला है, को सुजानगर उपजिला में 51 मंदिरों में मनाया जाना है, लेकिन हिंदू समुदाय के लोग इन हमलों के कारण भयभीत हैं। इन घटनाओं पर कार्यकारी अधिकारी मोहम्मद रशेदुज्जमान ने इसे ‘अलग-थलग घटना’ कहकर इसे हल्का बनाने की कोशिश की, जबकि सच यह है कि यह समस्या कोई अलग घटना नहीं, बल्कि हिंदुओं के खिलाफ एक योजनाबद्ध षड्यंत्र का हिस्सा है।

इससे पहले 3 अक्टूबर 2024 को, ढाका डिवीजन के किशोरगंज में गोपीनाथ जीउर अखाड़ा दुर्गा पूजा मंडप पर भी इसी तरह का हमला हुआ। इस घटना में 7 हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को रात में तोड़ा गया, जबकि मंदिर की सुरक्षा में तैनात गार्ड सो रहा था। हमलावरों ने दीवार फांदकर मंदिर में प्रवेश किया और मूर्तियों के सिर काट दिए। इस घटना के बाद, हिंदू समुदाय के लोगों ने विरोध मार्च निकाला, लेकिन प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से केवल आश्वासन मिला कि दोषियों को जल्द ही गिरफ्तार किया जाएगा। गोपीनाथ जीउर अखाड़ा दुर्गा पूजा उत्सव समिति के अध्यक्ष लिटन सरकार ने इस घटना पर गहरी नाराजगी जताते हुए कहा कि पहले कभी इस तरह की घटनाएं नहीं हुई थीं। उनके अनुसार, इन हमलों का उद्देश्य सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ना है। इस तरह की घटनाओं के चलते हिंदू समुदाय में दहशत का माहौल है और लोग सोच रहे हैं कि वे अपने धार्मिक त्योहार कैसे मना पाएंगे।

हिंदू समुदाय पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। शेख हसीना के हटने के बाद से ही बांग्लादेश में हिंदू दुकानों, व्यवसायों और मंदिरों पर 205 से अधिक हमले हो चुके हैं। यह सिलसिला तब और बढ़ गया जब कट्टरपंथी सरकार सत्ता में आई। चटगाँव में एक हिंदू युवक को इस्लामी कट्टरपंथियों ने 'ईशनिंदा' का आरोप लगाकर मार डाला था। मुस्लिम भीड़ ने पूरे थाने को घेर लिया और यहां तक कि आर्मी की गाड़ियों में भी आग लगा दी थी।

 

इसके अलावा, बांग्लादेश के विभिन्न इलाकों में इस्लामिक छात्रों ने 60 से अधिक हिंदू शिक्षकों, प्रोफेसरों और सरकारी अधिकारियों को अपने पदों से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया है। यह स्थिति बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के लिए एक गंभीर संकट का संकेत है। हिंदू समुदाय को दबाने और उनके धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन करने की यह घटनाएं न केवल बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार की विफलता को उजागर करती हैं, बल्कि इस्लामी कट्टरपंथ के बढ़ते खतरे को भी दिखाती हैं।

भारत में भी ऐसे हमलों का खतरा:-

बांग्लादेश में हिंदुओं पर होने वाले हमले हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि भारत में भी ऐसे ही हालात पैदा हो सकते हैं, जहां मुस्लिम आबादी अधिक होती है। भारत में भी ऐसा ही देखने को मिलता है, जहाँ मुस्लिम आबादी अधिक है, वहां हिन्दुओं के जुलूसों पर पथराव होते हैं, हमले होते हैं। बाद में खुद का कट्टरपंथ छुपाने के लिए इल्जाम हिन्दुओं पर ही लगा दिया जाता है कि हिन्दुओं ने उत्तेजक नारेबाजी की। इस तरह की घटनाओं में वोटों के लालची नेता भी कट्टरपंथियों का साथ देते हैं। 

 

यह एक गंभीर सवाल उठाता है: बांग्लादेश में कौन से उत्तेजक नारे लगाए जा रहे हैं, जो मूर्तियों को तोड़ने का कारण बन रहे हैं? यह सर्वविदित है कि इस्लाम में मूर्ति पूजा पाप (हराम) मानी जाती है, लेकिन किसी और के धार्मिक विश्वास को चोट पहुंचाने का अधिकार किसी को नहीं है। यह प्रवृत्ति पैगंबर मोहम्मद के समय से चली आ रही है, जब मक्का-मदीना में 360 मूर्तियों को तोड़ा गया था। भारत में मुगलों ने हजारों मंदिरों को ध्वस्त कर दिया और उनकी जगह मस्जिदें बनाई। तालिबान ने 2001 में बामियान की बुद्ध की विशालकाय मूर्तियों को नष्ट कर दिया, और आज पाकिस्तान-बांग्लादेश में वही हाल हो रहा है।

इसिहास से क्या सीख ?

इतिहास हमें सिखाता है कि जैसे-जैसे मुस्लिम आबादी बढ़ती है, बाकी समुदायों के लिए अपने धर्म का पालन करना मुश्किल हो जाता है। यह भारत में भी देखने को मिलता है, जहां मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदू त्योहारों और धार्मिक आयोजनों को लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। हमें इस बात पर विचार करना होगा कि इस तरह की घटनाएं आखिर क्यों हो रही हैं, और क्या इस्लामिक कट्टरपंथ का भविष्य वास्तव में दूसरे समुदायों के लिए खतरा बनता जा रहा है? यह भी सोचना होगा कि बांग्लादेश में कौन सा "अच्छा" मुस्लिम है जो कट्टरपंथियों को रोक रहा है? क्या 57 इस्लामी देशों में से कोई भी देश बांग्लादेश पर गैर-मुस्लिमों का नरसंहार रोकने के लिए दबाव डाल रहा है? बात ऐसी भी नहीं है कि बांग्लादेश में रह रहे कट्टरपंथी, किसी दूसरे ग्रह से आए हैं, 60-70 सालों पहले वे भारत का ही हिस्सा थे, 50 साल पहले 1971 में इसी कट्टरपंथ के खिलाफ उन्होंने लड़ाई लड़ी थी, लेकिन आज फिर उनके अंदर किसी ने मजहब का जहर भर दिया है, जो वे गैर-मुस्लिमों के खून के प्यासे हो गए हैं। बांग्लादेश में इस कट्टरपंथ के खिलाफ हिन्दू, बौद्ध, ईसाई और सिख एक हो चुके हैं, क्योंकि वे सभी एक ही समस्या से पीड़ित हैं, वहां पर 'बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद' नाम से एक संस्था है, भारत में ऐसी एकता का सपना भी नहीं देखा जा सकता, क्योंकि यहाँ के लोग अभी समस्या से ही अनजान हैं। और नेतागणों ने जाति का शिगूफा अलग छोड़ दिया है, जिससे और टुकड़े हो जाएं। बहरहाल, ये फैसला तो भारत की जनता को करना है कि उन्हें एक होना है या बिखरना है। 

क्योंकि, आज बांग्लादेश में हर जाति के हिंदू, बौद्ध और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय भय और असुरक्षा के माहौल में जी रहा है। मूर्ति पूजा को 'पाप' मानने वाले कट्टरपंथी मुस्लिम तत्व हिंदुओं के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का निरंतर उल्लंघन कर रहे हैं। यह समस्या सिर्फ बांग्लादेश तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया भर में जहां भी इस्लामी कट्टरपंथी हावी होते हैं, वहां गैर-मुस्लिम समुदायों को धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। भारत को भी सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि इतिहास बताता है कि मुस्लिम आबादी बढ़ने पर धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला होता ही रहा है।

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