देहरादून: उत्तराखंड के भिन्न प्रदेश बनने पर इसमें 13 जिले सम्मिलित किए गए। कुछ वक़्त पश्चात् विकास को गति देने के लिए नए जिलों के गठन की बात उठी। बताया गया कि छोटी प्रशासनिक इकाइयां बनने से विकास रफ़्तार पकड़ेगा। राज्य में अब तक अंतरिम सहित पांच सरकारें आ चुकी हैं, मगर नए जिलों का गठन नहीं हो पाया है। ऐसे में नजर अब आने वाली नई सरकार पर टिक गई है। दरअसल, नए जिलों के गठन का ऐलान साल 2011 में तत्कालीन सीएम रमेश पोखरियाल निशंक ने किया। उन्होंने कोटद्वार, यमुनोत्री, रानीखेत तथा डीडीहाट को नया जिला बनाने का ऐलान किया। इसका शासनादेश भी जारी हुआ। साल 2012 में कांग्रेस सत्ता में आई तो उसने इस शासनादेश पर अमल करने की जगह एक नई समिति बनाई, जिसने जिलों के गठन के मानकों को शिथिल करने का फैसला लिया, मगर अब तक भी इस केस में कोई निर्णय नहीं हो पाया। वही उत्तराखंड अब रफ़्तार से शिक्षा के बड़े केंद्र के तौर पर अपनी पहचान बना रहा है। दूसरे प्रदेशों से छात्र यहां पढ़ने आ रहे हैं। इसके उलट यहां सरकारी विद्यालयों के हाल काफी अच्छे नहीं हैं। हालात यह है कि इंटरमीडिएट स्कूलों में प्रधानाचार्यों के पद बड़े आंकड़े में खाली चल रहे हैं। सरकार ने तदर्थ पदोन्नति देकर इन पदों को भरने की कोशिश तो की, मगर इसमें पूरी कामयाबी नहीं प्राप्त हुई। साल 2018 में सरकार ने प्रधानाचार्यों के आधे पद सीधी भर्ती से भरने का फैसला लिया। बताया गया कि शेष पद विभागीय पदोन्नति से भरे जाएंगे। अध्यापकों ने इसका विरोध किया। इस पर शासन ने फैसला लिया कि सबकी सहमति के आधार पर एक उचित प्रस्ताव तैयार किया जाएगा। मौसम हुआ साफ, फिर शुरू हुई चारधाम यात्रा उत्तराखंड से केरल तक बारिश की ताबाही, आखिर कब विदा होगा मानसून ? अमित शाह आज करेंगे उत्तराखंड में बारिश प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण