स्वतंत्रता दिवस : ऐसे शुरू हुई अगस्त क्रांति और ऐसे हुआ देश आज़ाद

15 अगस्त 1947 में हमारे देश में ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी और ब्रिटेन की हुकूमत को हटाने की ये आखिरी जंग थी. ये तो आप जानते ही हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने 'करो या मरो' के नारे से अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था और उन्होंने इसमें कामयाबी भी हासिल की. लेकिन इसे हमेशा ही 'भारत छोडो आंदोलन' के रूप में जाना जाता है. उस समय ब्रिटिश सरकार के राज में जरूरत की चीज़ों की कीमत भी जैसे असंना छू रही थी जिससे देशवासी भूखे मरने पर मजबूर हो रहे थे. उस समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और कांग्रेस नेता ये जानते थे कि सरकार इस आंदोलन को दबाने के लिए किसी भी कार्रवाई पर उतर आएगी वहीं अंग्रेजों ने उस समय हर तरह के विरोध के लिए तैयारी कर ली थी ताकि हर कीमत पर जीत उनकी ही हो.

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इतिहासकार विपिनचंद्र ने अपनी पुस्तक 'भारत का स्वतंत्रता संघर्ष' में लिखा है कि युद्ध की सरकार ने खुद को कई कानूनों से जोड़ लिया था और कई तरह की शांतिपूर्ण राजनीतिक गतिविधियों को भी प्रतिबंधित कर दिया था. जबी ब्रिटिश सरकार ने देश की जनता को विश्वयुद्ध में झोंक दिया तो जनता भरी गुस्से में थी जिससे महात्मा गांधी अच्छे से परिचित थे. इसी को देखते हुए उन्होंने जनांदोलन करने का फैसला लिया. महात्मा गाँधी ने ये भी कहा था कि 'मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा.' इसके बाद 14 जुलाई, 1942 को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया और 8 अगस्त को इसका प्रस्ताव पारित हो गया. इसके बाद उन्होंने अपने भाषण में कांग्रेस का धन्यवाद किया और 'करो या मारो' के नारे का आह्वान किया.

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9 अगस्त को अगस्त क्रांति का ऐलान किया गया लेकिन इससे पहले ही ब्रिटेन ने कांग्रेस के नेताओं को हवालात में बंद कर दिया था और इसके बाद महात्मा गांधी को 9 अगस्त को सुबह ही गिरफ्तार कर आगा खां महल स्थित कैदखाने में बंद कर दिया गया  ताकि कोई आंदोलन शुरू ही ना हो. यही देखते हुए आंदोलन और भी उग्र हो गया और कांग्रेस के दूसरे नेता और महिलाओं ने इसे संभाला. आंदोलन की बागडोर अच्युत पटवर्धन, अरुणा आसफ अली, राममनोहर लोहिया, सुचेता कृपलानी, बीजू पटनायक, छोटूभाई पुराणिक, आर.पी. गोयनका और बाद में जेल से भागकर जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने संभाले रखी.

जगह-जगह टेलीफोन के तार काट दिए गए और सरकारी दफ्तरों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया. विपिनचंद्र के अनुसार, 1942 के अंत तक 60,000 से ज्यादा लोंगों को हवालात में बंद कर दिया गया, जिनमें 16,000 लोगों को सजा दी गई. आंदोलनकारी अहिंसा का मार्ग छोड़ हिंसा पर उतर आए और उन्होंने तोड़-फोड़ मचाकर अंग्रेजी सरकार को हिला कर रख दिया लेकि गांधीजी is पर नहीं माने क्योंकि वो अहिंसावादी थे. इसी के साथ जनता ने गाँधी की रिहाई की मांग की लेकिन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने इससे इंकार कर दिया उसके बाद 6 मई, 1944 को महात्मा गांधी को रिहा कर दिया. युद्ध में विजय ब्रिटेन की हुई लेकिन उन्हें फिर भी भारत छोड़कर जाना पड़ा और देश आज़ाद हुआ.

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