भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के पीएम शिंजो आबे ने हिंद प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा हालातों की समीक्षा की है. वही दोनों नेताओं ने क्षेत्र में शांति, समृद्धि और विकास में सहयोग के लिए तीसरे देशों में द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत बनाने का ठान लिया है. मिली जानकारी है कि पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन से इतर हुई इस मुलाकात में हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीनी सेना के बढ़ते प्रभुत्व व आर्थिक दबदबे का मामले को मुख्य रूप से ऊपर कि और उठाया है. सूत्रों का मानना है कि विदेश मंत्रालय ने बैठक की जानकारी देते हुए कहा है कि, जंहा भारत और जापान के प्रधानमंत्रियों ने मुक्त व समावेशी हिंद प्रशांत क्षेत्र के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई जाएगी. वही जानकारी है कि क्षेत्र में बनाई गयी योजना को पूरा करना है. वही दोनों नेताओं ने तीसरे देशों में सहयोग बढ़ाने के साथ-साथ द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने पर सहमति दी जा रही है. वही मिली जानकारी के मुताबिक कहने का मतलब है कि मंत्रालय के मुताबिक, दोनों नेताओं ने इस महीने के अंत में भारत और जापान के विदेश व रक्षा मंत्रालयों के बीच भारत में होने वाली 2+2 वार्तालाप की गई. ऐसा कहना है कि मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने ट्वीट किया, मोदी और आबे के बीच हुई ‘अच्छी वार्ता’ से टू प्लस टू और वार्षिक शिखर सम्मेलन का आधार बनाया गया है. जंहा पीएम मोदी ने दवा किया है कि आगामी शिखर सम्मेलन सफल होगा और इससे भारत और जापान के बीच विशेष रणनीतिक व वैश्विक साझेदारी में और भी गहराई आती जाएगी. भारत ने म्यांमार को दिया सहयोग सूत्रों के अनुसार यह बात भी सामने आई है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने म्यांमार की स्टेट काउंसिलर आंग सान सू की को विद्रोही समूह के खिलाफ सहयोग को लेकर आश्वस्त माना है. पीएम ने कहा कि भारत इस बात को सुनिश्चित करता है कि विद्रोही समूहों को भारत-म्यांमार सीमा पर गतिविधियां संचालित करने की न दी जाएँ. वही पीएम मोदी ने बीते विवार को आसियान शिखर सम्मेलन से इतर सू की से मुलाकात की. इस दौरान पीएम ने म्यांमार के रखाइन प्रांत में सामाजिक आर्थिक परियोजनाओं के विस्तार की बात का बयान किया है. विदेश मंत्रालय के मुताबिक, मोदी ने बांग्लादेश से विस्थापित लोगों की रखाइन प्रांत में उनके घरों में जल्द, सुरक्षित व स्थायी वापसी पर भी जोर दें रहे है. पीएम ने कहा कि विस्थापितों का उनके घर पहुंचना तीनों पड़ोसी देश भारत, बांग्लादेश और म्यांमार के साथ किया जा रहा है. जंहा दोनों नेताओं ने इस बात पर भी पुष्टि की है कि द्विपक्षीय साझेदारी के निरंतर विस्तार के लिए एक स्थिर और शांतिपूर्ण सीमा होना जरुरी है. पीएम ने यह सुनिश्चित करने पर भी जोर दिया कि दोनों देश यह सुनिश्चित करें कि विद्रोही समूहों को सीमावर्ती इलाकों में काम करने की जगह न दी जाएँ. पिछले समझौते में हुआ था नुकसान वही सूत्रों का कहना है की यूपीए सरकार के दौरान आसियान देशों के लिए 74 फीसदी बाजार को खोला था, लेकिन इंडोनेशिया जैसे अमीर देश ने भारत के लिए सिर्फ 50 फीसदी बाजार जारी किया था. जिसके साथ ही यूपीए शासनकाल में भारत ने 2007 में भारत-चीन एफटीए को लेकर सहमति जताई थी और चीन के साथ 2011-12 में आरसीईपी समझौते पर वार्ता को लेकर भी अर्जी की थी. जानकारी के अनुसार भारत के इस फैसले से आरसीईपी देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा 2004 में 7 अरब डॉलर से बढ़कर 2014 में 78 अरब डॉलर हो गया था. इस फैसले से भारत का घरेलू उद्योग अभी तक उभरा नहीं है. पराई औरत से बनाए नाज़ायज़ सम्बन्ध, अफसर को सरेआम पड़े कोड़े अमेरिका ने किया आगाह, कहा- भारत के लिए अब भी खतरा बने हुए हैं लश्कर और जैश गैस चैम्बर में तब्दील हुई दिल्ली, दुनिया के नक़्शे पर देखें डेंजर ज़ोन की तस्वीर