भारत की दरकार, रोटी रोज़गार या बुलेट की रफ्तार

                           भारत की दरकार, रोटी रोज़गार या बुलेट की रफ्तार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस गति से विश्व भ्रमण करते है उसी चाल से, भारतीय रेलो को भी चलाना चाहते है. ये जानते हुये कि स्वच्छ भारत अभियान के बावजूद, आज भी भारत का अधिकतर ग्रामीण अपने दिन की शुरुआत रेल की पटरियों के पास जाकर ही करता है. साथ में कभी कानपुर कभी मुज्जफरनगर जैसे हादसों से, भारतीय रेल अपने प्रबंधन के अकुशलता की कहानी बयान कर ही देती है. फिर भी इन सबके सुधार के बजाय हमारे प्रधानमंत्री भारत में 350 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से बुलेट रेल चलाना चाहते है और इस चाहत को पूरा करने के लिये उन्होंने जापानी पीएम को, ना केवल निमंत्रण दिया बल्कि महात्मा गाँधी के नगर अहमदाबाद में उनके स्वागत के लिए रेड कारपेट से लेकर रोड शो तक, कई सारे इवेंट भी आयोजित किये है. उनके इस साहसी जज़्बे के लिये उन्हें भी वीरता पुरस्कार तो मिलना चाहिये, लेकिन बानगी तो ये है कि ये बुलेट ट्रेन ज़मीन के ऊपर नही बल्कि समुद्र के नीचे चलेगी. तो हम ये मान सकते है कि पिछले दो माह मे हुये कई ट्रेन हादसों को देखकर प्रधानमंत्री जी और नवागत रेलमंत्री पीयूष गोयल ने ये फैसला लिया होगा, तब तो एक पल के लिये ये भी कहा जा सकता है कि वो देशवासियों को सुरक्षित यात्रा देना चाहते है. इससे भारत की लगातार बढ़ रही जनसंख्या से जगह की कमी और दुर्घटना, दोनो का समाधान हो जायेगा. उनकी इस जनरक्षा की भावना का भी सम्मान होना चाहिये,  

सरकारी अनुमान के अनुसार उनके इस सपने को सच करने में 1.10 लाख करोड़ रुपयों का खर्च आयेगा और जिसका लगभग 81% ( 88 हजार करोड़ ) मोदी जी के परम मित्र शिंजो आबेे 0.1% ब्याज पर 50 सालों के लिये देंगे. साथ में पहली बुलेट ट्रेन का, भारत आयात करेगा ऐसी भी सूचना है पर देसी घर जो पहले से टुटा और कमजोर है उसमे फिरंगी दुल्हन, एडजस्ट कैसे करेगी ये बड़ा सवाल है और उससे भी बड़ा सवाल ये कि क्या ये खबर, हर दिन बढ़ रहे पेट्रोल के भावो से तड़प रहे मध्यमवर्गीय आदमी, आत्महत्या कर रहे किसानों, 73 रूपये मंहगे सिलेंडर से रोटी कैसे बन पायेगी. इस चिंता मे डूब रही गृहणी, एक-एक रोटी को पाने के लिये संघर्ष कर रहे बाढ़ पीड़ितो, रोज़गार कार्यालयों के बाहर लम्बी कतारों  मे लगे युवाओं और महँगी शिक्षा के बावजूद स्कूलों में मर रहे बच्चों अभिभावकों के लिए खुशखबरी होगी ?

बुलेट रेल जमीन पर चले या समंदर में, रोटी कपड़ा और मकान के लिये हर रोज़ होने वाली जंग पर कोई फर्क नही पड़ेगा, अलबत्ता सरकार, जापानी उधार को चुकाने के लिये पहले से ही फटी भारतीयों की जेब में, हाथ जरुर डालेगी.  

दिल्ली में बैठे देश के कर्णधारों को ये सोचने की जरूरत है कि वर्तमान मे देश को हाई स्पीड की नही शिक्षा, कृषि और रोजगार जैसे क्षेत्रो में स्माॅल ग्रोथ की जरूरत है. 2022 तक बुलेट ट्रेन को मुम्बई से अहमदाबाद तक चलाने की योजना बनाने वालो को, पहले से देश में चल रही रेलों, उनकी पटरियों की दयनीय दशा को सुधारने की जरुरत है. कभी नक्सली पटरी उखाड़ देते है, कभी पटरी का लॉक टूट जाता है तो कभी ट्रैक के नीचे से ज़मीन खसक जाती है और ट्रेन पटरी छोड़कर, घरों में घुस जाती है. रेलवे फाटक में फाटक नहीं लगते है, आये दिन जानवर पटरियों पर कटकर आत्महत्या करते है, एसी फर्स्ट क्लास से बैग चोरी हो जाते है, घटना के समय रेल सुरक्षा के जवान ट्रेन में नज़र नही आते है ट्रेन के खाने में कीड़े बिना टिकट ही घुस जाते है,और तो और दिलजले आशिक ट्रेन के बाथरूम में शायरी या महबूबा का नाम, नंबर के साथ लिखकर दीवारों को गन्दा कर जाते है. टिकट वालो के टिकट चेक किये जाते है और बिना टिकट यात्रा करने वाले चेन खींचकर, स्टेशन आने के पहले ही चैन से उतर कर घर चले जाते है |

जिस तरह से हर रोज़ ट्रेन हादसे बढ़ रहे है, वो दिन दूर नही जब ट्रेन यात्रा से पहले यात्री अपनी वसीयत बना जायेगा ताकि उसके वापस जिन्दा न आने पर परिवार में जायजाद के झगड़े न हो | अब आप ही सोचिये कि जरूरी क्या है,  ट्रेन का नया अवतार या पुराने में सुधार?  

एक लाख करोड़ रूपए से केवल मुंबई-अहमदाबाद के बजाय पूरे देश की रेल का भला हो जाये, कुछ ऐसा सोचा जाये. वैसे भी हमें नई योजनाओं के भूमि पूजन से पहले पुरानी सरकारी योजनाओं का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है कि वो कितनी सफल हुई, उनसे देश कितना सक्षम हुआ, व्यवस्थाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार कैसे कम हो और कैसे  (बाकि कुछ बचा तो मंहगाई मार गई......)  का फ़िल्मी  गीत गा रहे. भारत की 90%आबादी अपने जीवन के स्तर को और सुधार सके, इस पर चिंतन मनन और क्रियान्वयन होना शायद बुलेट से ज्यादा ज़रूरी है.

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