नईदिल्ली। बांग्लादेश से एक दशक पूर्व भारत आए लगभग एक लाख चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दिए जाने की बात तय कर दी गई है। ऐसा विश्व में रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर उपजे संकट के बीच किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के आकलन के अनुसार भारत में करीब 40000 रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं और इनमें से 16000 लोगों को शरणार्थी का दस्तावेज मिला है। माना जा रहा है कि इन शरणार्थियों को लेकर आवश्यक निर्णय लिया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में इस मामले में आदेश दिया था, मगर इस पर कोई कार्य नहीं हो सका था। अब इस मामले में केंद्र सरकार ने पहल की है। ये लोग पूर्वोत्तर के शिविरों में निवास कर रहे हैं। सरकार के प्रयासों के तहत करीब एक लाख चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता देने की बात की जा रही है, जिससे शरणार्थियों को राहत मिलेगी। दूसरी ओर भारत ने पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या और रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थियों के मसले पर संयुक्त राष्ट्र में अपनी मांग सामने रखी। जिनेवा में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजीव के. चंदर ने कहा कि हम मानवाधिकार उच्चायुक्त की ओर से की गयी कुछ टिप्पणियों से हैरान हैं। यह उस आजादी और अधिकारों की अनुचित विवेचना है, जो एक जीवंत लोकतंत्र की गारंटी हैं और व्यवहार में हैं। हुसैन की टिप्पणियों को खारिज करते हुए चंदर ने कहा कि चुनिंदा और गलत रिपोर्ट के आधार पर इस तरह के निष्कर्ष पर पहुंचने से किसी समाज में मानवाधिकार की बेहतर समझ नहीं पैदा होती है। भारत ने यूएन में मानवाधिकार को लेकर भी चर्चा की। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख जैद राद अल हुसैन ने रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थियों को वापस भेजे जाने को लेकर भारत को कोसा। उन्होंने भारत की आलोचना धार्मिक असहिणुता और मानवाधिकार के सिलसिले में कार्य करने वालों के खतरे को लेकर की। रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों के लिए बांग्लादेश देगा अपनी जमीन ऑस्ट्रेलिया ने दूसरा टेस्ट जीत कर की बराबरी, नाथन लियोन की अहम भूमिका रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर जारी हिंसा पर मलाला ने आंग सान सू ची से किये सवाल आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा माने जा रहे रोहिंग्या मुसलमान