श्रीनगर: कश्मीर में पाकिस्तान के इशारे पर काम करने वाले दो डॉक्टरों को लेकर हैरान कर देने वाला खुलासा हुआ है। उन्होंने डूबकर मरीं दो महिलाओं की गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाकर सुरक्षाबलों के खिलाफ लोगों को भड़काने का प्रयास किया था। इस खुलासे के बाद दोनों डॉक्टरों को बर्खास्त कर दिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि डॉक्टर बिलाल अहमद दलाल और डॉक्टर निगहट शाहीन चिल्लू पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से काफी समय से जुड़े हुए थे। ये पाकिस्तानी जासूसों और आतंकी संगठनों के साथ मिलकर घाटी में अराजकता फैलाने का काम कर रहे थे और लोगों में गलत जानकारियां फैलाकर सुरक्षाबलों के प्रति नफरत भर रहे थे। बता दें कि, 30 मई 2009 को कश्मीर के शोपियां में 22 वर्षीय नीलोफर और 17 वर्षीय आसिया नामक दो लड़कियों का का शव एक नदी से बरामद हुआ था। दोनों ननद-भाभी थीं। ये अपने बगीचे से कथित तौर पर लापता हो गई थीं। इसके बाद आरोप लगाया गया था कि भारतीय सेना के सुरक्षाबलों ने इन महिलाओं के साथ साथ रेप किया और बाद में उन्हें मार डाला। नीलोफर और आसिया का पोस्टमार्टम डॉ बिलाल और डॉ निगहट ने ही किया था, जो पाकिस्तान के इशारे पर काम कर रहे थे। इन दोनों डॉक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में झूठी बात लिखते हुए कहा था कि इन दोनों लड़कियों की हत्या दुष्कर्म के बाद की गई थी। हालाँकि, सच ये था कि इन दोनों लड़कियों की मौत 29 मई 2009 को नदी में डूबने की वजह से हुई थी। 14 दिसंबर वर्ष 2009 को जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में CBI ने जाँच के बाद यह बात कही थी। डॉ. निगहत की रिपोर्ट में दोनों महिलाओं के साथ दुष्कर्म को लेकर संकेत किया गया था और उनके निष्कर्षों की पुष्टि एक फोरेंसिक रिपोर्ट में भी की गई थी। हालाँकि, शव परीक्षण में कमियों के चलते मृत्यु का कारण फोरेंसिक तौर पर स्थापित नहीं किया जा सका। निगहत पर झूठी रिपोर्ट बनाकर सुरक्षाबलों को मृत्युदंड के लिए दोषी ठहराने का इल्जाम लगा है। वहीं, बिलाल के खिलाफ CBI ने आसिया जान के सिर के अगले हिस्से पर कट से हुए घाव को गलत तरीके से कटा हुआ घाव बताने का इल्जाम लगाया है। बिलाल ने असिया जान के मामले में रक्तस्राव और सदमे तथा नीलोफर जान के मामले में न्यूरोजेनिक शॉक के चलते मौत होने की झूठी जानकारी दी थी। इस झूठ के फैलने के बाद कश्मीर के स्थानीय लोग भारतीय सेना के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे। इस दौरान पूरी घाटी में बड़े स्तर पर हिंसा भी देखने को मिली थी। कश्मीर घाटी 42 दिनों तक पूरी तरह ठप पड़ी थी और जगह-जगह हिंसा हो रही थी। इसका असर 7 माह तक रहा था। विरोध प्रदर्शनों के दौरान 7 नागरिकों की मौत हो गई थी, जबकि 103 लोग जख्मी हुए थे। इसके अलावा, 29 पुलिसकर्मियों और 6 अर्धसैनिक बलों के जवान जख्मी हुए थे। यह भी खुलासा हुआ है कि उस वक़्त की सरकार के उच्च अधिकारियों को इस ममले की पूरी सच्चाई पता थी, मगर उन्होंने इसे दबा दिया और सेना का विरोध होने दिया। यही नहीं, जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (JNU) के छात्र नेता कन्हैया कुमार (मौजूदा कांग्रेस नेता) ने 2016 में मीडिया के सामने भी यह दावा किया था कि, भारतीय सेना कश्मीरी महिलाओं का रेप करती है, इससे भी भारतीय सेना के खिलाफ नफरत फैली थी। हालाँकि, उमर अब्दुल्ला की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने 2009 में इन दोनों डॉक्टरों को सस्पेंड कर दिया था और मामले की जाँच CBI को सौंप दी थी। इसके बाद धारे-धीरे घाटी में स्थिति सुधरी। CBI ने जाँच में पाया कि दोनों महिलाओं के साथ कभी रेप हुआ ही नहीं था। इस घटना को लेकर जून से दिसंबर 2009 तक के 7 माह में हुर्रियत जैसे समूहों ने 42 दफा हड़ताल की। जिसके चलते कश्मीर में बड़े पैमाने पर दंगे हुए थे। इस दौरान कानून व्यवस्था से संबंधित 600 से ज्यादा मामले सामने आए। घाटी के विभिन्न थानों में दंगा, पथराव, आगजनी के 251 FIR दर्ज किए गए थे। एक अनुमान के अनुसार, उन 7 महीनों में राज्य को लगभग 6,000 करोड़ रुपए के कारोबार का नुकसान झेलना पड़ा था। 'हिंदुस्तान को तोड़ रही भाजपा, हम मिलकर उसे हराएंगे..', पटना में विपक्षी बैठक से पहले बोले राहुल गांधी अमेरिकी संसद में गूंजा मोदी-मोदी, सांसदों ने खड़े हो-होकर बजाई तालियां, Video भाजपा के खिलाफ आज पटना में 'विपक्ष' की महाबैठक, ED-CBI की कार्रवाई पर भी होगा मंथन