'उस वक़्त मानवाधिकार कहाँ था, जब कश्मीर में इस्लामिक क्रूरता चरम पर थी' - सुनंदा वशिष्ठ

वाशिंगटन: अमेरिकी कांग्रेस में कश्मीर मसले पर चल रही सुनवाई के दौरान भारत की कॉलमनिस्ट सुनंदा वशिष्ठ ने बड़ी बात कही है. उन्‍होंने 30 वर्ष पूर्व कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार की पूरी कहानी विश्व को बताई. सुनंदा वशिष्ठ ने अपने भाषण में कश्मीर के बारे में निजी अनुभव बताते हुए कई बड़े खुलासे किए. सुनंदा ने कहा कि मैंने 30 वर्ष पूर्व कश्मीर में आतंकी संगठन इस्‍लामिक स्‍टेट (ISIS) जैसी क्रूरता और दहशत का माहौल देखा है. उस समय पश्चिम देशों को इस्लामिक आतंकवाद के संबंध में पता भी नहीं था.

सुनंदा ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद मानवाधिकार की बात करने वालों पर तंज कसते हुए कहा है कि मानवता के रक्षक उस समय कहां थे, जब मेरे दादा खुद ही मुझे और मेरी मां को मारना चाहते थे, ताकि हम इस्लामिक क्रूरता से बच सकें. सुनंदा ने दुनिया को बताया कि जब विश्व ISIS आतंकियों की क्रूरता के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी, उस समय कश्मीर उससे अधिक हैवानियत झेल रहा था. वशिष्‍ठ ने कहा उस समय मानवाधिकारों के पैरोकार कहां थे, जब मेरे अधिकार छीन लिए गए.

उन्होंने कहा कि वे 19 जनवरी, 1990 की रात को कहां थे, जब कश्‍मीर की मस्जिदों से ये आवाजें आ रही थी कि वे कश्‍मीर में हिंदू औरतों को तो चाहते हैं, किन्तु हिंदू मर्दों को नहीं. उस समय मानवता के रखवाले कहां चले गए थे, जब मेरे बुजुर्ग दादा मुझे और मेरी मां को हैवानियत से बचाने के लिए चाकू और पुरानी कुल्‍हाड़ी लेकर मारने को उठ खड़े हुए थे. आतंकियों ने हमारे लोगों को तीन विकल्‍प दिए थे- भाग जाओ, धर्म परिवर्तन या मरने के लिए तैयार हो जाओ. उन भयवाह धमकियों के बाद उस दुर्भाग्‍यपूर्ण रात को चार लाख कश्‍मीरी हिंदुओं को घाटी छोड़कर बेघर होना पड़ा था.

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