नई दिल्ली: कोरोना महामारी के जानलेवा संक्रमण को रोकने वाली वैक्सीन खोजने की वैश्विक दौड़ में छह भारतीय कंपनियां भी काम कर रही हैं। लेकिन शीर्ष भारतीय वैज्ञानिकों का कहना है कि संक्रमण के तेजी से पूरी दुनिया में फैलाव के बीच समय के विपरीत चल रही वैक्सीन खोज की दौड़ को वर्ष 2021 से पहले जीतना संभव नज़र नहीं आ रहा है। कोरोना वायरस का संक्रमण वैश्विक स्तर पर 19 लाख से अधिक लोगों को चपेट में ले चुका है, जबकि 1.26 लाख से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। दुनिया भर के वैज्ञानिक इस खतरनाक महामारी का तोड़ तलाशने में जुटे हुए हैं। फरीदाबाद स्थित ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक गगनदीप कंग के अनुसार, कोरोना वायरस महामारी को हराने के लिए विस्तार और रफ़्तार के हिसाब से वैश्विक शोध और विकास प्रयास काफी बेमिसाल हैं। हालाँकि, सीईपीआई (महामारी तैयारी नवाचार गठबंधन) के वाइस चेयरमैन पद पर भी नियुक्त कंग ने यह भी कहा है कि किसी भी वैक्सीन के टेस्टिंग की प्रक्रिया बहुस्तरीय, जटिल और कई अन्य चुनौतियों वाली होती है। इसके चलते सार्स-कोव-2 (कोविड-19) की वैक्सीन खोजने में भले ही अन्य बीमारियों की वैक्सीन की तरह 10 वर्ष नहीं लगेंगे, किन्तु किसी वैक्सीन को तलाशने के बाद उसे सुरक्षित, प्रभावी और बड़े पैमाने पर मुहैया कराने के लिए कम से कम एक साल का समय अवश्य लगेगा। रूपए में आई रिकॉर्ड गिरावट, अब तक के सबसे निम्न स्तर पर पहुंचा एशिया की आर्थिक वृद्धि दर रहने वाली है शून्य, जाने क्यों निवेश करने को लेकर इन बातों से दुविधा में रहते है लोग