महंगाई, बेरोज़गारी, कर्जा..! आज संसद में सब पर बोली सरकार, आप भी देख लीजिए आंकड़े

नई दिल्ली: अक्सर ये सवाल उठता है कि, सरकार महंगाई-बेरोज़गारी पर कभी नहीं बोलती। विपक्ष द्वारा लगातार इसका आरोप लगाए जाने के बाद आम जनता के मन में भी ये बात घर कर गई है। लेकिन, इसका जवाब जानने वालों के लिए एक अच्छी खबर है, वो ये कि आज पेश किए गए आर्थिक सर्वे में सरकार ने इन सभी मुद्दों पर आंकड़ों के साथ जवाब दिए हैं। आज 2023-24 के लिए आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया गया है, जिसमें देश की आर्थिक स्थिति का विस्तृत विवरण दिया गया है। 

वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की अर्थव्यवस्था 8.2% की मजबूत दर से बढ़ी, जबकि 2024-25 के लिए अनुमानित विकास दर 6.5%-7% है। सर्वेक्षण में महंगाई में भी उल्लेखनीय कमी का संकेत दिया गया है, जो 2022-23 में 6.7% से घटकर 2023-24 में 5.4% हो गई है। सरकार का लक्ष्य 2024-25 में महंगाई को और घटाकर 4.5% करना है। इसके साथ ही सरकार ने स्वीकार किया कि, कुल महंगाई में कमी के बावजूद, कुछ खाद्य कीमतें अभी भी ऊंची हैं, और उन्हें नियंत्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि मई 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने पदभार संभाला था, तब खुदरा महंगाई दर 8.33% थी। 2004 से 2014 तक, कांग्रेस सरकार के तहत, औसत वार्षिक महंगाई दर 8.20% रही थी। इसके विपरीत, मोदी सरकार के तहत, 2014 से, 10 वर्षों में औसत वार्षिक मुद्रास्फीति दर 5.10% रही है। इसका मतलब है कि कांग्रेस शासन के दौरान 100 रुपये की लागत वाली वस्तुओं की कीमत में हर साल 8 रुपये की वृद्धि हुई, जबकि मोदी प्रशासन के तहत यह 5 रुपये थी।

आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया कि, व्यापार घाटे में उल्लेखनीय कमी देखी गई है, जो 2022-23 में $121 बिलियन (₹10 लाख करोड़) से घटकर 2023-24 में $78 बिलियन (₹6 लाख करोड़) हो गया। इसके अतिरिक्त, चालू खाता घाटा 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद के 2% से घटकर 2023-24 में 0.7% हो गया, जिसका मुख्य कारण विदेशों में भारतीयों द्वारा भेजे गए धन हैं। भारत को 2023-24 के दौरान $120 बिलियन से अधिक धन प्रेषण प्राप्त हुआ, जिससे यह दुनिया का सबसे अधिक धन प्रेषण प्राप्त करने वाला देश बन गया।

रोजगार के आंकड़ों से पता चलता है कि 49% स्नातक युवा वर्तमान में कौशल की कमी के रोज़गार पाने के योग्य नहीं हैं।  हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पिछले दशक में स्किल्ड युवाओं का प्रतिशत लगभग 34 प्रतिशत से बढ़कर 51.3 प्रतिशत हो गया है। जबकि हाल के वर्षों में बेरोजगारी में कमी आई है, रोजगार सृजन के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारत का कार्यबल (जितना रिकॉर्ड पर है) लगभग 56.5 करोड़ है, जिसमें से 45 प्रतिशत से अधिक कृषि क्षेत्र में, 11.4 प्रतिशत विनिर्माण क्षेत्र में, 28.9 प्रतिशत सेवा क्षेत्र में तथा 13.0 प्रतिशत निर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं। सर्वेक्षण के अनुसार, श्रमिकों की रोजगार स्थिति के संदर्भ में, कुल कार्यबल का 57.3 प्रतिशत स्वरोजगार कर रहा है, जो पहले काफी कम (कृषि को छोड़कर) हुआ करता था। वहीं 18.3 प्रतिशत घरेलू उद्यमों में अवैतनिक श्रमिक के रूप में काम कर रहे हैं। कुल कार्यबल में आकस्मिक श्रम का हिस्सा 21.8 प्रतिशत है और नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारी कुल कार्यबल का 20.9 प्रतिशत हैं। इसके अलावा EPFO में वार्षिक शुद्ध पेरोल वृद्धि वित्त वर्ष 19 में 61.1 लाख से दोगुनी होकर वित्त वर्ष 24 में 131.5 लाख हो गई, जो आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (ABRY) की सहायता से महामारी से तेजी से उबर रही है। ये एक साल में EPFO से जुड़ने वाले लोगों की संख्या है, जाहिर है, जो EPFO से जुड़ा है, वो रोज़गार कर ही रहा होगा।   

इसके अलावा सरकार ने गैर कृषि क्षेत्रों में हर साल लगभग 78.51 लाख नौकरियां पैदा करने का सुझाव दिया है, ताकि भारत के कार्यबल के हिसाब से उन्हें स्थान मिल सके। पूंजीगत व्यय और बढ़ते निजी निवेश पर सरकार के फोकस के कारण 2023-24 में सकल स्थिर पूंजी निर्माण में 9% की वृद्धि हुई है। देश के राजकोषीय स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ है। बाहरी ऋण 2023-24 में जीडीपी के 19% से घटकर 18.7% % हो गया है । बेहतर वित्तीय प्रबंधन के कारण राजकोषीय घाटा 2024-25 में घटकर 4.5% रहने की उम्मीद है, जो 2022-23 में 6% और 2023-24 में 5.6% से कम है। आर्थिक सर्वेक्षण के ये मुख्य अंश भारत की अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं में प्रगति और चल रही चुनौतियों दोनों को दर्शाते हैं।

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