इन दिनों तो जगन्नाथ पुरी धाम में रथयात्रा के लिए धूमधाम से तैयारियां चल रही हैं. जगन्नाथ यात्रा का आयोजन मंदिर एवं पूजा कमेटी द्वारा किया जाता है. फ़िलहाल इस भव्य रथ यात्रा की तैयारी के लिए मंदिर और पूजा कमेटी बैठक कर चर्चा कर रही है. जगन्नाथ रथ यात्रा 14 जुलाई से शुरू हो रही है जो कि 9 दिनों तक चलेगी. जगन्नाथ धाम देश के चार धामों में से एक है और इस धाम में दर्शन के लिए और रथ यात्रा में शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने में से लोगों की भीड़ उमड़ती हैं. हर साल ही जगन्नाथ रथ यात्रा को देखने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां एकत्रित होते हैं. इस रथ यात्रा में हर साल ही भगवान श्रीकृष्ण के साथ बलराम और सुभद्रा भी होते हैं, लेकिन उनके साथ कभी भी राधा या रुक्मिणी नहीं होतीं ऐसा क्यों? आपके मन में भी ये सवाल तो आया ही होगा तो चलिए हम आपको इसका जवाब बता ही देते है. पौराणिक कथा के अनुसार एक बार द्वारका में भगवान श्री कृष्णा ने नींद में अचानक ही राधे-राधे चिल्लाना कर दिया. इसके बाद वहां जितनी भी महारानियां मौजूद थीं उन्हें ये नाम सुनकर आश्चर्य होने लगा. जब श्रीकृष्ण जागे तो उन्होंने अपना मनोभाव प्रकट नहीं होने दिया लेकिन रुक्मणि ने अन्य सभी रानियों से पूछ लिया कि, ऐसा सुना है वृंदावन में राधा नाम की एक गोपी है जिसे प्रभु ने अब तक नहीं भुलाया है. रुक्मणि का ये सवाल सुनकर रोहिणी ने पहले तो कोई जवाब नहीं दिया लेकिन जब सभी ने जबरदस्ती की तो रोहिणी बताने को राज़ी हो गईं और कहा कि, मैं उनके बारे में बताने को तैयार हूं लेकिन पहले मां सुभद्रा से कहो कि वो महल की पहरेदारी करें और किसी को भी अंदर ना आने दें फिर चाहे वो श्रीकृष्ण ही क्यों ना हो. इसके बाद सुभद्रा भी महल के बाहर पहरेदारी करने बैठ गईं और जैसे ही कथा शुरू हुई श्रीकृष्ण और बलराम अचानक ही अंदर की ओर आते दिखाई दिए. इसके बाद सुभद्रा ने भगवान कृष्णा को कुछ कारण बताते हुए द्वार पर ही रोक दिया और लेकिन फिर भी श्रीकृष्ण और राधा की रासलीला के बारे में सभी बातें बलराम और कृष्णा को सुनाई दें गई. जैसे ही उन्होंने इस बारे में सुना तो श्रीकृष्ण और बलराम के अंदर प्रेम रास का भाव उत्पन्न हो गया और उनके साथ ही सुभद्रा भी इस प्रेम कहानी में गुम हो गईं. तीनों कहानी में ऐसे डूब गए कि उन्हें किसी के हाथ-पैर तक भी स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दिए. इसी बीच अचानक ही नारद ने आगमन किया और सभी पहले जैसे हो गए. नारद ने कहा कि, हे भगवान आप तीनों को ही जिस महाभाव में लीन मूर्तिस्थ रूप के मैंने दर्शन किए हैं, वह सामान्य जनों को भी होना चाहिए क्योंकि ये प्रेम का बहुत ही पवित्र रूप है. इतना सुनते ही भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराने लगे और नारद को तथास्तु कहने लगे. तब से ही जगन्नाथ जी के साथ-साथ बलराम और माता सुभद्रा का भी रथ निकलता है. इस रथयात्रा में शामिल होने के लिए श्रद्धालु सालभर इंतजार करते हैं. जगन्नाथ रथ यात्रा के रथ निर्माण का पौराणिक महत्त्व क्या आप जानते हैं जगन्नाथ मंदिर की यह खास बातें जगन्नाथ रथयात्रा: युगों-युगों से चली आ रही धर्मयात्रा