नई दिल्ली: हम जब भी कभी कामकाजी महिलाओं के बारे में बात करते हैं तो हमारे जेहन में टैंपो, बसों, कारों और ट्रेनों में प्रतिदिन ऑफिस जाने वाली महिलाओं की छवि सामने आती है, किन्तु हम ये भूल जाते हैं कि देश में रोज़ाना खेतों में करोड़ों की संख्या में महिला किसान काम करती हैं। भारत में एक पुरुष पूरे वर्ष में लगभग 1800 घंटे खेती का काम करता है वहीं महिलाएं 3000 घंटे खेती का कार्य करती है। यानी रोज़ाना लगभग 9 घंटे महिलाएं खेती करती है। इसके साथ ही महिलाओं को घर का काम, बच्चे संभालना और पशुओं की देखरेख आदि काम भी करना होता है। इन ग्रामीण महिलाओं को हिंदुस्तान की असली वर्किंग वुमन माना जाता है। केवल भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में कृषि के क्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं का 50 फीसद से अधिक योगदान है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 6 करोड से अधिक महिलाएं खेती के काम से संबंधित हुई हैं। वहीं एक रिसर्च के मुताबिक, बिहार, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान में महिलाओं सबसे अधिक भागीदारी खेती किसानी में होती है। जबकि केरल, पंजाब और पश्चिम बंगाल में महिलाओं की दिलचस्पी कम होती है। खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, कृषि क्षेत्र के कुल श्रम में ग्रामीण महिलाओं का योगदान 43 फीसद है, वहीं कुछ विकसित देशों में ये संख्या 70 से 80 फीसद भी है। हिमालय क्षेत्र में एक ग्रामीण महिला हर साल औसतन 3485 घंटे प्रति हेक्टेयर काम करती हैं, वहीं पुरुष औसतन 1212 घंटे कार्य करते हैं। इतना ही नहीं कृषि कार्यों के साथ ही महिलाएं मत्स्य पालन और पशुपालन में भी अपना योगदान दे रही हैं। 8 मार्च को केरल की महिलाएं रचेंगी इतिहास, CM की सुरक्षा से लेकर संभालेंगी ये अहम जिम्मे महिला दिवस पर पुरुषो को जरूर देखनी चाहिए यह फिल्में दिल्ली का भविष्य हो सकता है प्रदूषण फ्री, SC ने दूषित हवा पर बोली ये बात