नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट आज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर अहम फैसला सुनाएगा। इस फैसले को लेकर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सात सदस्यीय संविधान पीठ ने पहले ही सुनवाई पूरी कर ली थी। जस्टिस चंद्रचूड़ की 10 नवंबर को सेवानिवृत्ति से पहले यह उनका अंतिम कार्य दिवस है, और इसी दिन यह ऐतिहासिक निर्णय आने वाला है। इस फैसले के तहत सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि किसी शिक्षण संस्थान को संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के मानदंड क्या होंगे। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट इस पर भी विचार करेगा कि क्या संसद द्वारा बनाए गए किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा मिल सकता है। संविधान का अनुच्छेद 30 धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और उसे चलाने का अधिकार देता है। इसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक, धार्मिक, और शैक्षिक अधिकारों की सुरक्षा करना है ताकि उनकी पहचान और विकास सुरक्षित रह सके। एएमयू की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान ने मुसलमानों की शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए की थी। बाद में इसे 1920 में विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। 1951 और 1965 में किए गए एएमयू अधिनियम के संशोधनों के बाद इसके अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर विवाद शुरू हुआ। 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने तर्क दिया कि इसकी स्थापना एक केंद्रीय अधिनियम के तहत हुई थी, और इसे अल्पसंख्यक संस्थान मानने का आधार नहीं है। इस फैसले के विरोध में देशभर के मुस्लिम समुदाय में असंतोष फैला, जिसके बाद 1981 में सरकार ने एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने के लिए संशोधन किया। हालांकि, 2005 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस संशोधन को असंवैधानिक ठहराते हुए इसे खारिज कर दिया। इसके बाद यूपीए सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, परंतु 2016 में एनडीए सरकार ने उस अपील को वापस ले लिया। सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में केंद्र सरकार ने एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने का विरोध किया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एएमयू राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है और इसे किसी एक धर्म का नहीं माना जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि इसका राष्ट्रीय चरित्र इसे अल्पसंख्यक संस्थान होने से रोकता है। यह मामला इसलिए भी विशेष है क्योंकि मोदी सरकार का रुख पिछली यूपीए सरकार से भिन्न है। जहां यूपीए सरकार ने 1981 के संशोधन का समर्थन किया था, वहीं मौजूदा एनडीए सरकार का कहना है कि एएमयू राष्ट्रीय महत्व का विश्वविद्यालय है और इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए। कनाडा के PM पर एलन मस्क का बड़ा दावा, बोले- अगले चुनाव में ट्रुडो की.. 'देश के कई राज्यों में अवैध हथियार बढे..', सुप्रीम कोर्ट ने दिए सख्त निर्देश सोने की फैक्ट्री से कहाँ गया 1.5 करोड़ का गोल्ड पाउडर..? पुलिस ने सुलझाई गुत्थी