क्या हरिद्वार में गंगाजल का पानी पीने लायक है?, जानिए क्या बोले एक्सपर्ट्स?

हरिद्वार: हरिद्वार में गंगा नदी का पानी अब पीने लायक नहीं रहा है तथा इसे उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPCB) द्वारा 'अनसेफ' घोषित किया गया है। हालांकि, बोर्ड का कहना है कि गंगा का पानी नहाने के लिए सुरक्षित है, किन्तु पीने के लिए यह उपयुक्त नहीं है। इस बारे में जानकारी देते हुए, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिन एवं डॉ. पराग धकाते ने बताया कि गंगोत्री से लेकर हरिद्वार तक गंगा जल के नमूने लिए गए थे। कुछ समाचारों में यह जानकारी फैल रही है कि पूरे हरिद्वार में गंगा का पानी पीने के लिए उपयुक्त नहीं है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि हरिद्वार में कुल 12 जगहों से पानी के नमूने लिए गए थे, तथा इनमें से सिर्फ एक स्थान पर बैक्टीरिया की अधिकता की वजह से पानी पीने लायक नहीं पाया गया। बाकी स्थानों पर गंगा जल की गुणवत्ता सही पाई गई है।

वही इस मुद्दे पर पर्यावरणविद् और पद्म श्री तथा पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित डॉ. अनिल जोशी ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि यदि उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जांच में यह पाया गया है कि हरिद्वार का गंगाजल पीने योग्य नहीं है, तो सबसे पहले यह जांच होनी चाहिए कि यह पानी कहां तथा कैसे जांचा गया था। उन्होंने यह भी कहा कि बढ़ते प्रदूषण और जनसंख्या वृद्धि की वजह से हरिद्वार के गंगाजल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त, हरिद्वार में दुनियाभर से आने वाला कचरा भी गंगा में गिरता है, जिससे जल की गुणवत्ता खराब होती है।

हरिद्वार जैसे तीर्थ स्थल पर बड़े आंकड़े में लोग आते हैं, जिसके कारण गंगा में सीवेज और घरेलू कचरे का बहाव सीधे नदियों में होता है। अस्वच्छता तथा सीवेज ट्रीटमेंट की कमी इसके प्रमुख कारण हैं। इसके अतिरिक्त, गंगा में आसपास के उद्योगों जैसे कपड़ा, चमड़ा और रसायन उद्योगों से प्रदूषित पानी और कचरा भी छोड़ा जाता है, जो जल को विषैला बना देता है। धार्मिक अनुष्ठानों के चलते हरिद्वार में फूल, प्लास्टिक, पूजा सामग्री और अस्थि विसर्जन जैसी वस्तुएं गंगा में प्रवाहित की जाती हैं। साथ ही, पर्यटकों एवं स्थानीय लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक बैग, बोतलें और अन्य ठोस कचरे को भी गंगा में फेंका जाता है, जिसकी वजह से जल की गुणवत्ता और भी खराब हो जाती है।

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