सनातन धर्म (हिंदू धर्म) में व्रत और त्योहारों का बहुत महत्व है। उपवास (व्रत) का पालन करना हिंदू संस्कृति में एक सामान्य धार्मिक प्रथा है, जिसमें भक्त भक्ति और आध्यात्मिक अनुशासन के प्रतीक के रूप में भोजन और अन्य भोगों से परहेज करते हैं। हालाँकि, इस बात पर अक्सर बहस होती है कि व्रत के दौरान पति-पत्नी के बीच शारीरिक सम्बध बनाना गलत होता है या फिर सही? आइये आपको बताते है इसका धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण... धार्मिक कारणों से: हिंदू धर्म परंपराओं और रीति-रिवाजों से समृद्ध धर्म है और उपवास कोई अपवाद नहीं है। उपवास के दौरान, व्यक्ति न केवल अपने विचारों और कार्यों में बल्कि अपने भौतिक शरीर में भी शुद्धता प्राप्त करना चाहते हैं। ऐसे कई धार्मिक कारण हैं जिनकी वजह से उपवास के दौरान शारीरिक सम्बध को हतोत्साहित किया जाता है: पवित्रता और तपस्या: उपवास शरीर और आत्मा को शुद्ध करने का एक तरीका है। इसे तपस्या के एक रूप के रूप में देखा जाता है जो व्यक्तियों को भौतिक इच्छाओं से अलग होने और उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। माना जाता है कि उपवास के दौरान शारीरिक अंतरंगता में संलग्न होने से व्यक्ति का ध्यान इस आध्यात्मिक खोज से हट जाता है। अनुष्ठानिक पवित्रता बनाए रखना: हिंदू धर्म अनुष्ठानिक शुद्धता पर ज़ोर देता है। भक्तों का मानना है कि उपवास ईश्वर की भक्ति का एक कार्य है, और इस अवधि के दौरान पूर्ण शुद्धता बनाए रखना आवश्यक है। ऐसा माना जाता है कि किसी भी प्रकार की शारीरिक अंतरंगता पवित्रता की इस स्थिति को बाधित करती है। प्रतीकात्मक संयम: उपवास आत्मसंयम और संयम का प्रतीक है। न केवल भोजन बल्कि शारीरिक इच्छाओं से भी परहेज करके, व्यक्ति आध्यात्मिक विकास और अनुशासन के प्रति अपना समर्पण प्रदर्शित करते हैं। शारीरिक अंतरंगता में संलग्न होकर इस संयम को तोड़ना उपवास के उद्देश्य के विपरीत माना जाता है। अशुद्धता के परिणाम: हिंदू मान्यताओं के अनुसार, उपवास के दौरान शारीरिक अंतरंगता में शामिल होने से पवित्रता की हानि हो सकती है। ऐसा माना जाता है कि ऐसे कार्यों से किसी का शरीर अशुद्ध हो सकता है, और परिणामस्वरूप व्रत के लाभ समाप्त हो सकते हैं। परंपराओं का पालन: हिंदू धर्म परंपराओं और रीति-रिवाजों के पालन को बहुत महत्व देता है। अपनी पवित्रता से समझौता किए बिना उपवास करना इन परंपराओं का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता है, और उनसे भटकने को हतोत्साहित किया जाता है। वैज्ञानिक कारण: जबकि उपवास के दौरान शारीरिक अंतरंगता से दूर रहने के धार्मिक कारण परंपरा और विश्वास में गहराई से निहित हैं, ऐसे वैज्ञानिक तर्क भी हैं जो इस प्रथा का समर्थन करते हैं। वैज्ञानिक रूप से, उपवास के दौरान शारीरिक अंतरंगता में संलग्न होने के संभावित शारीरिक प्रभाव हैं: ऊर्जा की कमी: उपवास में एक निर्दिष्ट अवधि के लिए भोजन और कभी-कभी पानी से भी परहेज करना शामिल होता है। संभोग सहित शारीरिक गतिविधि में संलग्न होने से ऊर्जा की काफी कमी हो सकती है, जिसे उपवास के प्रतिबंधों के कारण आसानी से पूरा नहीं किया जा सकता है। निर्जलीकरण: उपवास से निर्जलीकरण हो सकता है, क्योंकि शरीर में आवश्यक तरल पदार्थ और पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। शारीरिक अंतरंगता आगे निर्जलीकरण में योगदान कर सकती है, जिससे संभावित रूप से असुविधा और कमजोरी हो सकती है। पोषक तत्वों की कमी: उपवास के दौरान शरीर को आवश्यक पोषक तत्वों का नियमित सेवन नहीं मिल पाता है। शारीरिक गतिविधि इस कमी को बढ़ा सकती है, जो संभावित रूप से किसी के स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित कर सकती है। आध्यात्मिक लक्ष्यों से ध्यान भटकाना: उपवास का उद्देश्य आध्यात्मिक चिंतन और भक्ति का समय है। शारीरिक अंतरंगता में संलग्न होने से व्यक्ति अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों और उपवास के उद्देश्य से विचलित हो सकते हैं। प्रजनन क्षमता पर प्रभाव: गर्भधारण करने की कोशिश कर रहे जोड़ों के लिए, उपवास शारीरिक अंतरंगता के लिए आदर्श समय नहीं हो सकता है। पोषक तत्वों और शरीर की ऊर्जा की कमी संभावित रूप से प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकती है। हिंदू धर्म में, उपवास एक पोषित परंपरा है जो भक्ति, पवित्रता और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है। जबकि उपवास के दौरान शारीरिक अंतरंगता से परहेज करने के धार्मिक कारण विश्वास और परंपरा में गहराई से निहित हैं, ऐसे वैज्ञानिक तर्क भी हैं जो इस प्रथा का समर्थन करते हैं। दोनों दृष्टिकोण उपवास के दौरान पवित्रता बनाए रखने और आध्यात्मिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने के महत्व पर जोर देते हैं। अंततः, उपवास के दौरान शारीरिक अंतरंगता में शामिल होने का निर्णय व्यक्तिगत है, जो व्यक्तिगत मान्यताओं और इस अभ्यास से जुड़े धार्मिक और वैज्ञानिक पहलुओं की समझ से निर्देशित होता है। गणेश चतुर्थी के दिन घर ले आएं ये 4 चीजें, बनी रहेगी सुख समृद्धि आखिर क्यों भगवान गणेश को चढ़ाई जाती है दूर्वा? जानिए कथा प्यू सर्वेक्षण ने दक्षिण पूर्व एशिया में राष्ट्रीय पहचान को आकार देने में धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका का किया खुलासा