नई दिल्ली: ब्रिटेन में 3 जून को एक फिल्म रिलीज़ हुई, ‘द लेडी ऑफ हेवन’। जिसके रिलीज़ होते ही पूरे ब्रिटेन में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और इस विरोध के चलते सिनेमाघरों को फिल्म के शोज़ कैंसल करने पड़े। दरअसल, सिनेमाघरों को चिंता थी कि उनके स्टाफ की सुरक्षा को इन प्रदर्शनों से गंभीर खतरा हो सकता है। आलोचकों ने इस फिल्म पर रेसिस्ट होने और ईशनिंदा (Blasphemy) के आरोप लगाए हैं। ब्रिटेन में फिल्म को पूरी तरह प्रतिबंधित करने के लिए विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, कोर्ट में याचिकाएं पहुंच रही हैं। बता दें कि इस फिल्म को लेकर केवल ब्रिटेन में ही बवाल नहीं मचा है, बल्कि पाकिस्तान, मिस्र और ईरान जैसे इस्लामी मुल्क तो ‘द लेडी ऑफ हेवन’ पर प्रतिबंध भी लगा चुके हैं। देशों की इस फेहरिस्त में अब मोरक्को का नाम भी शामिल हो गया है। फर्स्ट टाइम डायरेक्टर इलाई किंग ने ‘द लड़ी ऑफ हेवन’ का निर्देशन किया है, वहीं, इसकी कहानी शिया समुदाय के धर्मगुरु शेख यासीर अल हबीब ने लिखी है। फिल्म की शुरुआत एक इराक़ी बच्चे से होती है। फिल्म की शुरुआत में बताया जाता है कि खूंखार आतंकी संगठन ISIS ने इराक पर कब्ज़ा कर लिया है। देश में आतंक बढ़ चुका है और आम लोगों का कत्लेआम हो रहा है। ऐसे ही एक आतंकी हमले में ये बच्चा अपनी मां को खो देता है। उस बच्चे की मां के इंतकाल के बाद उसे एक औरत गोद ले लेती है। यही औरत यतीम हुए उस बच्चे को हिम्मत देने के लिए एक कहानी सुनाती है, 1400 वर्ष पुरानी कहानी। ये कहानी होती है मुस्लिमों के पैगम्बर 'मोहम्मद' की बेटी फातिमा की। यहां से फिल्म दो कालखंडों में एकसाथ चलती है, एक ISIS का आतंक और एक फातिमा की 1400 साल पुरानी कहानी। फिल्म में फातिमा को आतंकवाद की पहली पीड़िता के रूप में दर्शाया गया है। फातिमा की कहानी के माध्यम से ये बच्चा सब्र और तकलीफ़ जैसी बातों को समझ पाता है। ‘द लेडी ऑफ हेवन’ पर क्यों मचा है बवाल ? ‘द लेडी ऑफ हेवन’ को लेकर मचे हंगामे की दो प्रमुख वजह है। पहला तो यह फिल्म पैगम्बर मोहम्मद और उनकी बेटी फातिमा पर है, जिनके पोर्ट्रेयल पर इस्लाम धर्म में सख्त पाबन्दी है। हालांकि, फिल्म निर्माताओं का कहना है कि उन्होंने पैगम्बर और फातिमा के लिए किसी भी एक्टर को साइन नहीं किया। इन किरदारों को इन-कैमरा और विज़ुअल इफेक्ट्स की सहायता से बनाया गया है। यहां तक कि इस फिल्म में फातिमा का चेहरा भी नहीं दिखाया गया है। लेकिन इसके बाद भी इस फिल्म पर मुस्लिम समुदायों को बांटने के भी इल्जाम लगे हैं। विरोध करने वालों की दलील है कि फिल्म में इस्लामी इतिहास के कुछ किरदारों की तुलना ISIS के आतंकियों के साथ की गई है। ये तमाम किरदार सुन्नी समुदाय से थे और इस फिल्म को लिखने वाला शख्स शिया धर्मगुरु है। ये भी एक कारण है कि सुन्नी इस फिल्म पर भड़के हुए हैं। विरोधियों का कहना है कि फिल्म में इतिहास को तोड़-मरोड़कर अपने तरीके से दिखाया गया है। इस पर फिल्म के एग्ज़ेक्युटिव प्रड्यूसर मलिक एक इंटरव्यू में कहते हैं कि हम फातिमा की ज़िंदगी और संघर्ष परदे पर दिखाना चाहते थे। उन्होंने कहा कि, हमें लगता है कि फातिमा इतिहास की एक अहम शख्सियत हैं। जिनसे काफी कुछ सीखा जा सकता है कि कैसे आप कट्टरवाद और भ्रष्टाचार जैसी चीज़ों का मुकाबला सकते हैं। इसलिए हमें लगा कि फातिमा की कहानी दुनिया के साथ साझा करनी चाहिए। मलिक ने कहा कि धर्म से संबंधित मुद्दों पर मतभेद पहले भी होते रहे हैं। रही बात हिस्ट्री के साथ छेड़छाड़ करने की, तो हमने इतिहास के साथ कुछ अतिरेक नहीं किया है। हमने फिल्म के प्री-प्रॉडक्शन पर लगभग एक साल लगाया, ताकि सही फैक्ट्स दुनिया के सामने रख सकें। मलिक के अनुसार, लोगों फिल्म की आलोचना करने के लिए स्वतंत्र है और वो अपना पक्ष रख सकते हैं। लेकिन, इन विरोध प्रदर्शनों ने सारी सीमाएं लांघ दी है। बता दें कि ऐसा नहीं है कि पूरा ब्रिटेन ही इस फिल्म का विरोध कर रहा है। यहां कुछ मुस्लिम ऐसे भी हैं, जो नहीं चाहते कि फिल्म पर प्रतिबंध लगे। वहीं, अगर इस मुद्दे पर अगर सरकार के स्टैंड की बात करें तो, उनकी तरफ से इस पूरे विवाद पर कोई आधिकारिक बयान तो नहीं आया है, मगर उन्होंने इमाम कारी असीम को निकाल दिया है। कारी ब्रिटेन सरकार के इस्लामोफोबिया एडवाइज़र थे। उन्हें 2019 में नियुक्त किया गया था, ताकि सरकार इस्लामोफोबिया को परिभाषित कर सके, और मुसलमानों के प्रति बढ़ती नफरत को कम करने के लिए कदम उठा सके। सरकार ने इमाम कारी को निकालते हुए कहा कि वो ‘द लेडी ऑफ हेवन’ के खिलाफ जारी प्रदर्शनों का समर्थन कर रहे थे। आखिर किस तरह दर्जनों लड़कियों को इस शख्स ने बनाया गर्लफ्रेंड 12 साल छोटे बॉयफ्रेंड संग छुट्टियां बिता रही किम कोरोना की चपेट में आया ये मशहूर अभिनेता