मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। उद्धव ठाकरे, जो पहले भाजपा और संघ के खिलाफ तीखे बयान देने के लिए जाने जाते थे, अब अपने बदले हुए सुर से सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गए हैं। हाल ही में, शिवसेना (उद्धव गुट) के मुखपत्र सामना में उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की तारीफ करते हुए उन्हें "गढ़चिरौली का मसीहा" कहा। गढ़चिरौली जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्र में विकास की बात करते हुए उद्धव ने फडणवीस को प्रेरणादायक नेता करार दिया। उद्धव की यह तारीफ उस वक्त आई है जब उनके साथी राहुल गांधी और कांग्रेस, भाजपा और संघ पर लगातार हमलावर हैं। राहुल गांधी ने तो संघ को "नफरत का प्रतीक" और भाजपा को "तानाशाही की समर्थक" तक कहा है। वहीं दूसरी ओर, उद्धव की पार्टी के प्रवक्ता संजय राउत ने संघ की मेहनत और बूथ लेवल पर उनके काम की तारीफ की है। उन्होंने कहा कि भाजपा की चुनावी सफलता में संघ के कार्यकर्ताओं का बड़ा योगदान है। उद्धव ठाकरे का यह बदला हुआ रुख राजनीतिक पंडितों को हैरान कर रहा है। कुछ समय पहले तक उद्धव के बयान भाजपा और संघ पर सीधे हमले होते थे। लेकिन अब फडणवीस की तारीफ और संघ के काम को सराहना क्या यह इशारा कर रही है कि उद्धव फिर भाजपा की ओर झुक रहे हैं? उद्धव और फडणवीस के बदले संबंधों की झलक आदित्य ठाकरे की फडणवीस के साथ हालिया मुलाकातों में भी दिखी है। आदित्य और फडणवीस की यह तीसरी मुलाकात बताती है कि दोनों पक्षों के बीच संवाद फिर से शुरू हो चुका है। महाराष्ट्र में आगामी कॉर्पोरेशन, नगर निगम और स्थानीय स्वराज संस्थाओं के चुनाव को देखते हुए यह राजनीतिक समीकरण बदलने का संकेत हो सकता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर शिवसेना (उद्धव गुट) में स्पष्टता का अभाव है। पार्टी के नेता संजय राउत और प्रियंका चतुर्वेदी अलग-अलग बयान दे रहे हैं। संजय राउत का कहना है कि कांग्रेस और आप को साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए था, जबकि प्रियंका चतुर्वेदी ने आम आदमी पार्टी का समर्थन करते हुए कहा कि दिल्ली में भाजपा को हराने के लिए आप को मजबूत करना जरूरी है। उद्धव ठाकरे गुट के प्रवक्ता आनंद दुबे ने इन सबके बीच कहा कि पार्टी ने अभी दिल्ली चुनाव पर कोई औपचारिक फैसला नहीं लिया है। उनका कहना है कि कांग्रेस और आप दोनों का उद्देश्य भाजपा को हराना है, और शिवसेना इसी दिशा में सोच रही है। उद्धव के बदले हुए सुर क्या एक रणनीति का हिस्सा हैं या फिर महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा-शिवसेना के पुराने रिश्ते फिर से बहाल हो सकते हैं? राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि उद्धव का यह रुख केवल प्रशंसा नहीं, बल्कि संभावित गठबंधन की जमीन तैयार कर सकता है। उद्धव ठाकरे की यह चाल महाराष्ट्र में एक बड़ा उलटफेर कर सकती है। अगर भाजपा और शिवसेना फिर साथ आते हैं, तो यह महाराष्ट्र की राजनीति का नया अध्याय होगा। फिलहाल, उद्धव का बदला हुआ लहजा और फडणवीस की तारीफ यह सवाल जरूर खड़ा करती है कि क्या शिवसेना (उद्धव गुट) फिर से भाजपा के करीब जा रही है? 'राहुल गांधी को खुश करने के लिए ऐसा कह रहे दानिश..', किस बयान पर बोलीं शर्मिष्ठा मुखर्जी? ख़त्म होने वाला है INDIA गठबंधन...! कांग्रेस के अहंकार से अखिलेश-तेजस्वी से लेकर ममता-अबदुल्ला भी नाराज़ तिरुपति मंदिर में मची भीषण भगदड़, 4 श्रद्धालुओं की दुखद मौत, कई घायल