'बच्चा अगर P@RN देखे तो अपराध नहीं, लेकिन...', बाल अश्लील कंटेंट डाउनलोड के मामले में SC की टिप्पणी

नई दिल्ली: शुक्रवार (19 अप्रैल 2024) को सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना तथा देखना POCSO अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत जुर्म नहीं है। इसके साथ ही आरोपित के विरुद्ध आपराधिक मामले को रद्द कर दिया था। वही इस मामले की सुनवाई कर रहे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ एवं न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा, “बहस पूरी हो गई, फैसला सुरक्षित रखा गया।”

इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने एक नोटिस जारी कर इस मामले में केंद्र सरकार से भी उसका पक्ष माँगा है। इस मामले में दो NGO ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। सुनवाई के चलते CJI ने कहा, “उसके मोबाइल पर कुछ चाइल्ड पॉर्न था..आपको कैसे पता चला कि उसके पास था।” इस पर याचिकाकर्ता ने कहा, “टिप गृह मंत्रालय से जिला पुलिस को आती है। इसे एक विदेशी संगठन द्वारा स्कैन किया जाता है, जो बाल पोर्न के ऐसे इंटरनेट डाउनलोड को ट्रैक करता है। शख्स दो वर्षों से चाइल्ड पोर्नोग्राफी देख रहा था।” इस पर जस्टिस पारदीवाला ने कहा, “उन्होंने साइट पर वीडियो अपलोड किया था या उन्हें किसी तीसरे पक्ष ने वीडियो मुहैया कराया था? यदि उसे अपने दोस्त से मिला है तो क्या हम बोल सकते हैं कि उसने वीडियो अपलोड किया है.. यह कानून का एक साफ-सुथरा सवाल है कि क्या ऐसा कृत्य POCSO के तहत अपराध हैं?” 

CJI चंद्रचूड़ ने कहा, “किसी को (पोर्नोग्राफी) केवल अपने व्हाट्सएप इनबॉक्स पर रिसीव करना कोई अपराध नहीं है। वीडियो की प्राप्ति धारा 15 का उल्लंघन नहीं है, किन्तु अगर आप इसे देखना जारी रखते हैं तथा इसे शेयर करने का इरादा रखते हैं तो यह इस धारा का उल्लंघन है।” दोनों NGO की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फुल्का ने तर्क दिया, “यह उसके (आरोपित के) पास है।” इस पर जस्टिस पारदीवाला ने कहा, “आपको उनसे क्या करने की उम्मीद थी कि उन्हें इसे हटा देना चाहिए था? तथ्य यह है कि उन्होंने 2 वर्षों तक इसे नहीं हटाया। यह एक अपराध है?” बाल यौन शोषण से संबंधित कानून POCSO अधिनियम के प्रावधानों का अवलोकन करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के खंडपीठ ने कहा, “(पोर्नोग्राफी को) साझा करने या प्रसारित करने का इरादा होना चाहिए। यह परीक्षण का मामला है।”

तत्पश्चात, अधिवक्ता फुल्का ने कनाडा के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा, “जिस क्षण आरोपित के पास आ जाता है, उसके पश्चात् यह उसकी जिम्मेदारी हो जाती है।” वहीं, NCPCR की तरफ से उपस्थित वरिष्ठ वकील स्वरुपमा चतुर्वेदी ने कहा, “तीन अलग-अलग खंड हैं। समस्या यह है कि वे (उच्च न्यायालय) बच्चों के उपयोग की जगह बच्चों द्वारा पोर्न देखने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जो पूरी तरह से तथ्यों का गलत उपयोग है।” इस पर CJI ने कहा, “हाँ, बच्चे का पोर्नोग्राफी देखना अपराध नहीं हो सकता है, किन्तु पोर्नोग्राफी में बच्चे का उपयोग अपराध है।”

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