आज ही के दिन हुआ था गरीबों के मसीहा जॉर्ज फर्नांडिस का देहांत

भारत में जॉर्ज फर्नांडिस को गरीबों का मसीहा कहा जाता था. 3 जून 1930 को जन्मे जॉर्ज फर्नांडिस 10 भाषाओं के जानकार हैं - हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तुलु, कोंकणी और लैटिन. उनकी मां किंग जॉर्ज फिफ्थ की बड़ी प्रशंसक थीं. उन्हीं के नाम पर अपने छह बच्चों में से सबसे बड़े का नाम उन्होंने जॉर्ज रखा. बमों के विरोधी जॉर्ज के रक्षा मंत्री रहते भारत ने परमाणु बम का परीक्षण किया. मंगलौर में पले-बढ़े फर्नांडिस जब 16 साल के हुए तो एक क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने की शिक्षा लेने भेजे गए. पर चर्च में पाखंड देखकर उनका उससे मोहभंग हो गया. उन्होंने 18 साल की उम्र में चर्च छोड़ दिया और रोजगार की तलाश में बंबई चले आए. एक हवाई यात्रा के दौरान जॉर्ज की मुलाकात लैला कबीर से हुई थी. लैला पूर्व केंद्रीय मंत्री हुमायूं कबीर की बेटी थीं. दोनों ने कुछ वक्त एक-दूसरे को डेट किया और फिर शादी कर ली. उनका एक बेटा शॉन फर्नांडिस है जो न्यूयॉर्क में इंवेस्टमेंट बैंकर है. कहा जाता है बाद में जया जेटली से जॉर्ज की नजदीकियां बढ़ने पर लैला उन्हें छोड़कर चली गई थीं. 

जॉर्ज खुद बताते हैं कि इस दौरान वे चौपाटी की बेंच पर सोया करते थे और लगातार सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे. फर्नांडिस की शुरुआती छवि एक जबरदस्त विद्रोही की थी. उस वक्त मुखर वक्ता राम मनोहर लोहिया, फर्नांडिस की प्रेरणा थे. 1950 आते-आते वे टैक्सी ड्राइवर यूनियन के बेताज बादशाह बन गए. कुछ लोग तभी से उन्हें ‘अनथक विद्रोही’ (रिबेल विद्आउट ए पॉज़) कहने लगे थे. बंबई के सैकड़ों-हजारों गरीबों के लिए वे एक हीरो थे, मसीहा थे. इसी दौरान 1967 के लोकसभा चुनावों में वे उस समय के बड़े कांग्रेसी नेताओं में से एक एसके पाटिल के सामने मैदान में उतरे. बॉम्बे साउथ की इस सीट से जब उन्होंने पाटिल को हराया तो लोग उन्हें ‘जॉर्ज द जायंट किलर’ भी कहने लगे. 1973 में फर्नांडिस ‘ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन’ के चेयरमैन चुने गए. इंडियन रेलवे में उस वक्त करीब 14 लाख लोग काम किया करते थे. 

जॉर्ज फर्नांडिस मानते थे कि अहिंसात्मक तरीके से किया जाना वाला सत्याग्रह ही न्याय के लिए लड़ने का एकमात्र तरीका नहीं है. फर्नांडिस ने 1977 का लोकसभा चुनाव जेल में रहते हुए ही मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से रिकॉर्ड मतों से जीता. जनता पार्टी की सरकार में वे उद्योग मंत्री बनाए गये. बाद में जनता पार्टी टूटी, फर्नांडिस ने अपनी पार्टी समता पार्टी बनाई और भाजपा का समर्थन किया. फर्नांडिस ने अपने राजनीतिक जीवन में कुल तीन मंत्रालयों का कार्यभार संभाला - उद्योग, रेल और रक्षा मंत्रालय. पर वे इनमें से किसी में भी बहुत सफल नहीं रहे. कोंकण रेलवे के विकास का श्रेय उन्हें भले जाता हो लेकिन उनके रक्षा मंत्री रहते हुए परमाणु परीक्षण और ऑपरेशन पराक्रम का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को ही दिया गया.

रक्षामंत्री के रूप में जॉर्ज का कार्यकाल खासा विवादित रहा. ताबूत घोटाले और तहलका खुलासे से उनके संबंध के मामले में जॉर्ज फर्नांडिस को अदालत से तो क्लीन चिट मिल गई लेकिन यह भी सही है कि लोगों के जेहन में यह बात अब तक बनी हुई है कि जॉर्ज फर्नांडिस के रक्षा मंत्री रहते ऐसा हुआ था. उनके कार्यकाल के दौरान परिस्थितियां इतनी खराब हो चली थीं कि मिग-29 विमानों को ‘फ्लाइंग कॉफिन’ कहा जाने लगा था. लेकिन एक तथ्य यह भी है कि जॉर्ज भारत के एकमात्र रक्षामंत्री हैं, जिन्होंने 6,600 मीटर ऊंचे सियाचिन ग्लेशियर का 18 बार दौरा किया था. बता दें कि  जॉर्ज फर्नांडिस की मृत्यु आज ही के दिन यानि 29 जनवरी 2019 को हुई थी.

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