तिरंगे पर लिख दिया अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं..! गुलामुद्दीन समेत 6 पर दर्ज FIR रद्द करने से HC का इंकार

लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने के आरोप में 6 आरोपियों के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया है। सभी आरोपी मजहबी जुलूस में अपने हाथों में तिरंगा लेकर चल रहे थे। लेकिन इन भारतीय ध्वजों पर इस्लामी पुस्तक कुरान की आयतें लिखी हुई थीं। मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने कहा कि प्रथम दृष्टया आरोपियों द्वारा किया गया कृत्य भारतीय ध्वज संहिता 2002 के तहत दंडनीय है। न्यायमूर्ति दिवाकर ने आगे कहा कि आवेदकों द्वारा राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 की धारा 2 का उल्लंघन किया गया है।

हाई कोर्ट ने कहा कि भारतीय ध्वज धार्मिक नैतिकता और सांस्कृतिक मतभेदों से परे राष्ट्र की एकता और विविधता का प्रतीक है। अदालत ने कहा कि, "यह भारत की सामूहिक पहचान और संप्रभुता का प्रतिनिधित्व करने वाला एक एकीकृत प्रतीक है। तिरंगे के प्रति अनादर का कृत्य दूरगामी सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव डाल सकता है, खासकर भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज में इसकी कोई जगह नहीं है।" इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि तिरंगे पर कुरान और कलमा आदि की आयतें लिखे जाने की घटनाओं का फायदा वे लोग उठा सकते हैं, जो सांप्रदायिक विवाद पैदा करना चाहते हैं या विभिन्न समुदायों के बीच गलतफहमियों को बढ़ावा देना चाहते हैं। इसलिए कुछ व्यक्तियों के कृत्य का इस्तेमाल पूरे समुदाय को कलंकित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश की जालौन पुलिस ने पिछले साल आरोपी गुलामुद्दीन और 5 अन्य के खिलाफ राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 की धारा 2 के तहत मामला दर्ज किया था । इस मामले में आरोपी ने जमानत के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसके वकील ने दलील दी कि जांच में यह पता नहीं चला कि FIR में जिस झंडे का जिक्र है, वह तिरंगा है या तीन रंगों वाला कोई और झंडा। आरोपी के वकील ने आगे तर्क दिया कि पुलिस रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं ला सकी जिससे पता चले कि अधिनियम की धारा 2 और 3 में निर्दिष्ट राष्ट्रीय ध्वज के साथ कोई शरारत की गई थी। वकील ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने FIR दर्ज करने के बाद राष्ट्रीय ध्वज लगाया था और आरोपियों को झूठे मामले में फंसाया गया था।

वहीं, राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता (AGA) ने कहा कि जुलूस के दौरान तिरंगा लहराया गया। इस दौरान देखा गया कि तिरंगे पर अरबी में कुछ लिखा हुआ था। पता चला कि ये कुरान और कलमा की आयतें हैं। पुलिस कांस्टेबल खुर्शीद आलम, एहसानुल्लाह और रामदास ने कोर्ट में अपने बयान दर्ज कराए हैं। सरकारी वकील ने कहा, "जब शहर काजी मौलाना साबिर अली को जालौन बुलाया गया और झंडे पर लिखी बातें पढ़ने को कहा गया तो उन्होंने बताया कि झंडे पर इस्लामी कलमा लिखा हुआ है। इसके अलावा अली की तलवार 'जुल्फिकार' से जुड़ी एक आयत भी लिखी हुई है।" बता दें कि, कलमे में लिखा हुआ है कि, अल्लाह के सिवा और कोई इबादत के लायक नहीं है।   

सभी दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस पर सिर्फ ट्रायल कोर्ट ही फैसला ले सकता है। कोर्ट ने कहा कि समन आदेश में कोई अवैधता, विकृति या कोई अन्य महत्वपूर्ण त्रुटि नहीं पाई गई है, जिससे सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों के प्रयोग में कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप को उचित ठहराया जा सके।

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