देश जगन्नाथ रथ यात्रा की तैयारी में लगा है और पूरी की छटा तो देखते ही बनती है. परंपरा के अनुसार ज्‍येष्‍ठ मास की पूर्णिमा से अमावस्‍या तक भगवान को बीमार मानकर एक बच्चे की तरह उनकी सेवा की जाती है. मंदिर के पट बंद हैं भगवान को काढ़े (दवाई के रूप में) का भोग लगाया जाता है. भगवान के बीमार पड़ने की भी कथा जान लीजिये पुराणों के अनुसार राजा इंद्रदुयम्‍न अपने राज्‍य में भगवान की प्रतिमा बनवा रहे थे. जिसे शिल्‍पकार अधूरा छोड़कर चले गए. यह देखकर राजा दुखी हुए. तभी भगवान ने इंद्रदुयम्‍न को दर्शन देकर कहा, ‘विलाप न करो. मैंने नारद को वचन दिया था कि बालरूप में इसी आकार में पृथ्‍वीलोक पर विराजूंगा.’ तत्‍पश्‍चात भगवान ने राजा को कहा कि 108 घट के जल से मेरा अभिषेक किया जाए. तब ज्‍येष्‍ठ मास की पूर्णिमा थी. तब से यह मान्‍यता चली आ रही है कि किसी शिशु को यदि कुंए के ठंडे जल से स्‍नान कराया जाएगा तो बीमार पड़ना स्‍वाभाविक है. इसलिए तब से ज्‍येष्‍ठ मास की पूर्णिमा से अमावस्‍या तक भगवान की बीमार शिशु के रूप में सेवा की जाती है. इस साल ज्‍येष्‍ठ मास की पूर्णिमा 27 जून से प्रभु को बीमार समझ कर उनका इलाज चल रहा है जो 14 जुलाई को रथ यात्रा से ए‍क दिन पहले तक जारी रहेगा. युगों युगों से धर्म,आस्था और संस्कृति की धरती भारत में इन विरासतों का अपना स्थान है और कई तरह की धार्मिक मान्यताओं में जगन्नाथ रथयात्रा का अपना महत्व है. पुराणों के अनुसार सौ यज्ञों के बराबर पुण्य की दायिनी श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथ की रथयात्रा के दिन पुरी में जगन्नाथ मंदिर भक्तों से पटा रहता है. दस दिवसीय इस धर्म महोत्सव में देश और दुनिया के लाखों कृष्ण भक्त आते है. जगन्नाथ रथ यात्रा : यात्रा से पहले बीमार हुए भगवान जगन्नाथ 752 चूल्हों पर बनता है जगन्नाथ रथयात्रा का महाप्रसाद जगन्नाथ रथ यात्रा : विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा की तिथियां और कार्यक्रम