जगजीत सिंह एक ऐसा नाम जिसकी आवाज में एक कशिश थी। ऐसी आवाज जिसे सुनो तो सुनते रहने का मन हो। 10 अक्टूबर 2011 को यह आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई। 7 साल बाद भी वह आवाज याद आती है। जगजीत तो चले गए, लेकिन अपने पीछे छोड़ गए अपने प्रशंसकों और श्रोताओं की ऐसी लंबी फौज, जो सुबह से शाम तक केवल जगजीत को सुनना चाहती थी। जगजीत के प्रशंसक उनकी आवाज में अपने दर्द की दवा ढूंढते थे, लेकिन यह दुखद था कि जगजीत का खुद दर्द से गहरा नाता था। 8 फरवरी 1941 को गंगानगर राजस्थान में जन्मे जगजीत का बचपन का नाम जीत था। अपने नाम के अनुरूप उन्होंने करोड़ो लोगों का दिल अपनी गायकी से जीत लिया और आगे आने वाले समय में लोगों के दिलों पर राज करते रहेंगे। अपनी मृत्यु से करीब 2 महीने पहले की जगजीत का दिल्ली के सिरीफोर्ट आॅडिटोरियम में कार्यक्रम था। इसमें उन्होंने अपनी मशहूर गजल 'ठुकराओ या प्यार करो' में तब्दीली करते हुए गाया 'ठुकराओ या प्यार करो कि मैं 70 का हूं।' दरअसल, जगजीत 70 साल के होने पर 70 लाइव कंसर्ट करना चाहते थे, लेकिन अचानक से हुए ब्रेनहेमरेज ने उनका यह सपना छीन लिया। जगजीत की जिंदगी में कई दर्द थे, लेकिन इसकी भनक उनकी गजलों को सुनने से बिल्कुल भी नहीं लगती। 1990 के जुलाई महीने में उनके बेटे का देहांत हो गया। जगजीत का यह दुख अभी कम भी नहीं हुआ था कि 2009 में उनकी बेटी ने आत्महत्या कर ली। यह आवाज एक अनजाने दुख में डूब गई, लेकिन जगजीत ने अपने प्रशंसकों से मुंह नहीं मोड़ा और उनका मनोरंजन करते रहे। ऐसा कहा जाता है कि हर कलाकार अपनी किसी कृति में खुद को देखता है। जगजीत सिंह की एक गजल है 'होठों से छू लो तुम' इसमें एक लाइन है 'जग ने छीना मुझसे, मुझे जो भी लगा प्यारा', ऐसा लगता है कि जगजीत ने यह गजल खुद के लिए ही गाई थी। हर वह चीज जिसे वह प्यार करते थे, उनसे दूर होती गई, लेकिन संगीत को साधना मानने वाला यह गायक अपनी गायकी से श्रोताओं का मनोरंजन करता रहा, उनके दर्द की दवा बनता रहा। जगजीत सिंह की गजलों ने हमें भरपूर आनंद और सुख दिया। उनकी गजलों में किसी को इश्क नजर आया, तो किसी को जश्न। किसी ने मोहब्बत देखी, तो किसी ने इबादत। आज जगजीत को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी गाई यह लाइनें याद आ रही हैं 'जानें वो कौन सा देश... जहां तुम चले गए...'