चेन्नई: तमिलनाडु के मदुरई में स्थित थिरुपरनकुन्द्रम पहाड़ी इस समय विवादों के केंद्र में है। इस पहाड़ी को तमिलनाडु की जनता, भगवान मुरुगन के छह पवित्र निवासों में से एक मानती है। यह पहाड़ी अपनी धार्मिक पवित्रता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जानी जाती है, लेकिन हाल के वर्षों में इस पर वक्फ बोर्ड के दावे और विवादित गतिविधियों ने हिन्दू समुदाय की भावनाओं को आहत किया है। ताजा विवाद 21-22 जनवरी 2025 को तब हुआ, जब इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के सांसद नवास कानी ने अपने समर्थकों के साथ इस पहाड़ी पर मांसाहारी भोजन किया। वे उन लोगों का समर्थन करने पहुँचे थे, जो इस पहाड़ी पर स्थित दरगाह के पास बकरियों और मुर्गों की कुर्बानी देना चाहते हैं। यह दरगाह मंदिर से कुछ दूरी पर है, लेकिन हिन्दू संगठनों का कहना है कि ऐसी गतिविधियाँ भगवान मुरुगन की पवित्र भूमि का अपमान हैं। पुलिस ने कुर्बानी की अनुमति नहीं दी और केवल भोजन ले जाने की इजाजत दी है। मुस्लिम समुदाय का दावा है कि दरगाह की जमीन वक्फ बोर्ड की है और वहां कुर्बानी की अनुमति मिलनी चाहिए। वहीं, हिन्दू संगठनों का आरोप है कि यह प्रयास भगवान मुरुगन के पवित्र स्थान को अपवित्र करने और वक्फ का जरिए जमीनी विवाद खड़ा करने के लिए किया जा रहा है। 18 जनवरी 2025 को भी मुस्लिम संगठनों ने यहाँ जानवर ले जाने की कोशिश की थी, लेकिन प्रशासन ने उन्हें रोक दिया। इस दौरान माहौल तनावपूर्ण हो गया, और अब कुर्बानी का मामला प्रशासन के पास लंबित है। विवाद की जड़ में वक्फ कानून भी है, जिसमे 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने संशोधन किया था और इस कानून ने वक्फ बोर्ड को इतनी ताकत दे दी कि वह किसी भी जमीन को अपनी संपत्ति बताकर उस पर दावा ठोक सकता है। असली मालिक को अपनी जमीन बचाने के लिए वक्फ ट्रिब्यूनल में गुहार लगानी पड़ती है, जो अक्सर पीड़ित के पक्ष में फैसला नहीं देता। अब मोदी सरकार इस कानून में संशोधन करने की कोशिश कर रही है, ताकि पीड़ितों को सीधे अदालत में जाने का अधिकार तो मिले। लेकिन कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। थिरुपरनकुन्द्रम पहाड़ी पर दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से बनी जैन गुफाओं को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है। ये गुफाएँ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में हैं और इनमें ब्राह्मी लिपि में शिलालेख हैं। हाल ही में, इन गुफाओं को हरे रंग से रंगने का मामला सामने आया, जिससे ASI अधिकारियों ने शिकायत दर्ज करवाई है। इसके अलावा, पहाड़ी का नाम बदलकर ‘सिकंदर पहाड़ी’ करने के प्रयास भी चल रहे हैं, जो हिन्दू समुदाय को आक्रोशित कर रहे हैं। मद्रास हाई कोर्ट में दरगाह पर नमाज रोकने के लिए एक याचिका भी दायर की गई थी, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि 30 मिनट की नमाज से कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। हालांकि, हिन्दू संगठनों का आरोप है कि कुर्बानी और नाम बदलने जैसे प्रयास पहाड़ी की पवित्रता को खत्म करने और यहाँ पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों को हतोत्साहित करने की रणनीति का हिस्सा हैं। यह विवाद धार्मिक भावनाओं से जुड़ा होने के साथ-साथ राजनीतिक रंग भी ले चुका है। मुस्लिम लीग, एसडीपीआई और जमात जैसे संगठन पहाड़ी पर कुर्बानी की मांग कर रहे हैं, जबकि हिन्दू समुदाय इसे धार्मिक और सांस्कृतिक अपमान मान रहा है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का वक्फ कानून में संशोधन का विरोध इस समस्या को और जटिल बना रहा है। थिरुपरनकुन्द्रम पहाड़ी का यह मामला दिखाता है कि कैसे वक्फ कानून की आड़ में धार्मिक स्थलों पर विवाद खड़े किए जा रहे हैं और उन्हें राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है। 'गणतंत्र दिवस में शामिल होने की इजाजत दी जाए..', खालिस्तान समर्थक सांसद अमृतपाल की HC में याचिका महाकाल मंदिर की भस्मारती में मोबाइल ले जाने पर लगा प्रतिबंध..! प्रबंधन ने बताया ये कारण बालासाहेब ठाकरे को दिया जाए 'भारत रत्न' सम्मान..! सांसद संजय राउत ने उठाई मांग