जैन धर्मानुसार रात में भोजन करना अनुचित, जाने वैज्ञानिक कारण

हर धर्म में अनेक रीती रिवाज़ पाए जाते है जो कहीं न कहीं मानव जीवन को डिस्कॉपलीनेड और व्यवस्थित बनाने का काम करते है धर्म के इन्ही प्रथाओं के चलते एक सुगम और सरल जीवन यापन की कल्पना की जाती है. . भारत देश में अनेकता में एकता है यहाँ विभिन प्रांतरा विभिन भाषा और विभिन्न धर्म के लोग पाए जाते है।  धर्मो की इस विभिधता में भी अनेक प्रकार की सहजता मिलती है  बायत करने जा रहे है जैन धर्म में वर्धित रात्रि भोजन  निषेधता के विषय  सन्दर्भ  में वैज्ञानिक रूप से भी उचित माना  जाता है  

रात्रि भोजन के त्याग के पीछे अहिंसा और स्वस्थ्य दो प्रमुख कारण है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि रात्रि में सूक्ष्म जीव बड़ी मात्रा में फैल जाते हैं।ऐसे में सूर्यास्त के बाद खाना बनाने से सूक्ष्म जीव भोजन में प्रवेश कर जाते हैं। खाना खाने पर ये सभी जीव पेट में चले जाते हैं।जैन धारणा में इसे हिंसा माना गया है। इसी कारण रात के भोजन को जैन धर्म में निषेध माना गया है। इसका एक कारण स्वास्थ्य से जुड़ा है तो दूसरा पाचन तंत्र से। सूर्यास्त के बाद हमारी पाचन शक्ति मंद पड़ जाती है। इसलिए खाना सूर्यास्त से पहले खाने की परंपरा जैनोँ के अलावा हिंदुओं में भी है।यह भी कहा जाता है कि हमारा पाचन तंत्र कमल के समान होता है। जिसकी तुलना ब्रह्म कमल से की गई है। प्राकृतिक सिद्धांत है कि सूर्य उद्य के साथ कमल खिलता है। अस्त होने के साथ बंद हो जाता है।

 

इसी तरह पाचन तंत्र भी सूर्य की रोशनी मे खुला रहता है और अस्त होने पर बंद हो जाता है। ऐसे में यदि हम भोजन ग्रहण करें तो बंद कमल के बाहर ही सारा अन्न बिखर जाता है। वह पाचन तंत्र में समा नही पाता। इसलिए शरीर को भोजन से जो ऊर्जा मिलनी चाहिए। वह नहीं मिलती और भोजन नष्ट हो जाता है। जैन धर्म अहिंसा प्रधान है। धर्म का सारा जोर हिंसा रोकने पर है। वह चाहे किसी भी रूप में, किसी भी तरह की हिंसा क्यों न हो। 

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