जज को भी सताती है अपनी बेटी की चिंता

वारानाशी : बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में हो रहे लैंगिक भेदभाव को लेकर वहां के छात्रों ने उच्चतम न्यायालय में केस दायर किया था. जिसको लेकर उच्चतम न्यायालय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के अधिकारियों से विद्यार्थियों के उस ज्ञापन पर विचार करने को कहा, जिन्होंने छात्राओं के खिलाफ ‘लैंगिक भेदभाव वाले नियमों’ पर सवाल उठाया है. वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि अगर मेरी बेटी भी देर से लौटती है तो उसके साथ मेरी पत्नी या मैं खुद साथ में रहता हूं.

शीर्ष न्यायालय ने नियमों को चुनौती देने वाले विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को ज्ञापन के जरिए विश्वविद्यालय अधिकारियों के समक्ष अपनी शिकायतें उठाने को कहा है वहीं पीठ ने छात्रों द्वारा किए गए किसी गलत आचरण के बारे में अपना जवाब दाखिल करने के लिए विश्वविद्यालय को स्वतंत्रता दी है.

इस केस में सुनवाई के दौरान पहले बीएचयू के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता प्रदर्शन में शामिल थे और उनके खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज है. वहीं छात्र विकास सिंह और अन्य की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि लैंगिक भेदभाव वाले ऐसे कई नियम कायदे हैं, जिन्हें बीएचयू के वूमेंस हॉस्टल ने बनाया है.

उन्होंने बताया कि यह हॉस्टल की लड़कियों को रात आठ बजे के बाद परिसर से बाहर जाने की इजाजत नहीं देता. उन्होंने दावा किया कि लड़कियां रात 10 बजे के बाद मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं कर सकती, इसके बाद उन्हें स्पीकर मोड में रखना पड़ता है. उन्हें छोटे कपड़े भी नहीं पहनने दिए जाते.

वहीं भूषण ने कहा कि लड़कियों को अपने हॉस्टल के कमरों में वाईफाई और इंटरनेट के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जाती जबकि छात्रों (पुरूष छात्रों) को ऐसी सुविधाओं की इजाजत है. उन्होंने कहा कि यदि कोई लड़की रात में हॉस्टल से शहर से बाहर जा या आ रही हो तो नियमों के चलते उसे इसकी इजाजत नहीं. ये क्रूर और पुरातनपंथी नियम हैं. पीठ ने कहा कि छात्रों को अपनी शिकायतों के बारे में विश्वविद्यालय अधिकारियों को एक ज्ञापन देना चाहिए और वह इस पर गौर करेगा.

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