ढाका: बांग्लादेश में हाल ही में घटी एक शर्मनाक घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। देश के प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल हई कानू, जिन्हें 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में उनके साहसिक योगदान के लिए 'बीर प्रतीक' से सम्मानित किया गया था, का इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा अपमान किया गया है। कट्टरपंथी इस्लामी संगठन जमात-ए-इस्लामी के समर्थकों ने उन्हें जूतों की माला पहनाई और धमकाया। यह घटना कॉमिल्ला जिले के चौद्ग्राम इलाके में हुई, जहाँ कानू को उनके गाँव लौटने पर निशाना बनाया गया। अब्दुल हई कानू के साथ हुए इस अपमानजनक कृत्य का वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो चुका है, जिसमें लगभग 10-12 लोगों ने उन्हें घेर रखा है। वीडियो में देखा जा सकता है कि कट्टरपंथियों ने कानू को माफी माँगने के लिए मजबूर किया और उन्हें गाँव छोड़ने की धमकी दी। बताया जा रहा है कि इस घटना के पीछे जमात-ए-इस्लामी के स्थानीय नेता अबुल हाशम मजूमदार और वाहिद मजूमदार का हाथ है। गौरतलब है कि जमात-ए-इस्लामी वही संगठन है, जिसने 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान का समर्थन किया था, अब इतने सालों में उसने धीरे-धीरे बांग्लादेशी युवाओं के दिल में भी मजहब का जहर भर दिया है। बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ हिंसा और देशद्रोह के मामलों में इसका काला इतिहास रहा है। अब एक बार फिर इस संगठन ने अपनी कट्टर मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए एक राष्ट्रीय नायक का अपमान किया है। उल्लेखनीय है कि, 1971 का बांग्लादेश मुक्ति संग्राम उस समय लड़ा गया था, जब पाकिस्तान की सेना ने बंगाली लोगों पर अमानवीय अत्याचार किए थे। करीब 2 लाख बंगाली महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किए गए और 30 लाख से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। उस समय भारत ने बांग्लादेश के लोगों को पाकिस्तानी दमन से मुक्त करने के लिए मदद की थी। मगर, आज बांग्लादेश में हालात बदल गए हैं। मजहबी कट्टरपंथ में अंधे हो चुके बांग्लादेशी अब उसी भारत को अपना दुश्मन मानते हैं, जिसने उन्हें पाकिस्तानी अत्याचार से बचाया था। दूसरी ओर, पाकिस्तान, जिसने बांग्लादेश पर जुल्म ढाए, वह अब बांग्लादेश के लिए दोस्त बन चुका है। इसका एकमात्र कारण यह है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों मुस्लिम देश हैं। इस घटना ने बांग्लादेश में बढ़ती कट्टरता और अहसानफरामोशी को उजागर कर दिया है। अब्दुल हई कानू, जिन्होंने बांग्लादेश की आज़ादी के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया, को उसी देश में जलील किया गया, जिसे उन्होंने आज़ाद कराया था। यह घटना बताती है कि जब किसी सांप को दूध पिलाया जाता है, तो वह डँसना नहीं छोड़ता। आज बांग्लादेश उसी सांप की तरह इस्लामी कट्टरपंथ में डूबकर भारत को निशाना बना रहा है। कानू ने इस घटना के बाद मीडिया से कहा, "मैंने सोचा था कि इस बार मैं अपने गाँव में शांति से रह सकूँगा, मगर उन्होंने मेरे साथ पाकिस्तानी जंगली जानवरों से भी ज्यादा हिंसक व्यवहार किया।" उनका यह बयान बांग्लादेश की कट्टरपंथी मानसिकता का कड़वा सच सामने लाता है। कानू का अपमान सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि उन सभी मूल्यों और संघर्षों का अपमान है, जिन पर बांग्लादेश की स्वतंत्रता की नींव रखी गई थी। चौद्दाग्राम पुलिस थाने के इंचार्ज अख्तरुज जमान ने कहा कि आरोपियों की पहचान कर ली गई है और उन्हें पकड़ने के लिए छापेमारी जारी है। लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। कानू और उनका परिवार इस घटना के बाद मानसिक रूप से टूट चुका है और वे अपना घर छोड़कर कहीं और चले गए हैं। बता दें कि जमात-ए-इस्लामी एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है, जिसने 1971 के मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान का साथ दिया था। इसके नेताओं पर देशद्रोह और युद्ध अपराध के आरोप लगे थे। शेख हसीना सरकार ने इस पर प्रतिबंध भी लगाया था, लेकिन बाद में युनुस सरकार ने इस प्रतिबंध को हटा दिया। तब से यह संगठन फिर से सक्रिय हो गया और अल्पसंख्यकों, हिंदुओं और आवामी लीग के समर्थकों को निशाना बना रहा है। अब्दुल हई कानू के साथ जो हुआ, वह एक कड़वा सबक है कि मदद उन्हीं की करनी चाहिए, जो मदद के काबिल हों। बांग्लादेश के लोगों को पाकिस्तानी अत्याचार से बचाने वाला भारत आज उनका दुश्मन बना बैठा है, जबकि पाकिस्तान, जिसने बांग्लादेश को तबाह किया, वह अब उनका दोस्त है। युद्ध भोपाल का..! जब मुगलों-निजामों और नवाबों पर अकेले भारी पड़ी थी 'बाजीराव' की सेना बुंदेलखंड के किसानों को पानी की किल्ल्त से मिलेगी मुक्ति, केन-बेतवा लिंक परियोजना का उद्घाटन करेंगे पीएम मोदी गांधी परिवार के गढ़ अमेठी में बंद पड़ा है 120 साल पुराना शिव मंदिर, समुदाय विशेष का कब्जा..!