जन्माष्टमी के दिन किया था श्री कृष्णा ने शकटासुर वध, जानिए कथा

आप सभी जानते ही होंगे कि हिंदू धर्म में हर साल कृष्ण के जन्मोत्सव को एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. ऐसे में वासुदेव और देवकी के आठवें पुत्र कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को हुआ था और ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में चंद्रमा का उदय हुआ था. इसी वजह से कृष्ण जन्मोत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है.

वहीं इस बार कृष्ण जन्माष्टमी 24 अगस्त दिन शनिवार को मनाई जाने वाली है. कहा जाता है जन्माष्टमी के दिन मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार किया जाता है और जगह जगह झाकियां सजायी जाती हैं. इसी के साथ भगवान कृष्ण के बाल रुप को झूले पर बैठाकर उन्हें झूला झुलाया जाता है और यह कार्य बहुत शुभ होता है. आपको बता दें कि इस दिन पुरुष और महिलाएं जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं और रात को बारह बजे कृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं और इस दौरान शंख, नगाड़े, घंटे और थालियां बजाकर कृष्ण के जन्म की खुशियां बांटी जाती हैं. बहुत कम लोग जानते हैं कि जन्माष्टमी मनाने के पीछे केवल श्री कृष्णा का जन्म ही नहीं बल्कि एक और कहानी प्रचलित है जो यह है.

कैसे किया था श्री कृष्णा ने शकटासुर का अंत और कैसे मिला था उसे मोक्ष - कहते हैं जब भगवान कृष्ण तीन महीने के थे तब एक दिन उनकी मां यशोदा उन्हें एक पलंग में आंगन में सुलाकर यमुना नदी में स्नान करने चली गयीं. जब वह लौटकर आयीं तो पलंग टूटा हुआ था और भगवान श्री कृष्ण पलंग से नदारत थे. उन्होंने जब घर के अंदर जाकर देखा तो भगवान कृष्ण वहां पलंग पर सो रहे थे वास्तव में यह भगवान की लीला थी. जब यशोदा कृष्ण को सुलाकर स्नान करने चली गयीं तब कंस ने शकटासुन नामक राक्षस को कृष्ण का वध करने के लिए भेजा. वह राक्षस भगवान कृष्ण को नींद में देखकर बहुत खुश हुआ और उन पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने लगा. जैसे ही वह कृष्ण को मारने के लिए दौड़ा उन्होंने उस राक्षस को हवा में उछाल दिया और जमीन पर गिरकर उसकी मौत कर दी. कृष्ण के हाथों मरने के बाद शकटासुर को मोक्ष की प्राप्ति हुई. ऐसे भगवान श्रीकृष्ण ने शकटासुर को असुर योनि से बाहर निकालकर उसे मोक्ष दिलाया और जन्माष्टमी के दिन शकटासुर वध की कथा को हमेशा याद किया जाता है.

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