आज जीवित्पुत्रिका व्रत है। ये व्रत प्रत्येक वर्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इसे जिउतिया अथवा जितिया व्रत भी बोला जाता है। पुत्र की दीर्घ, आरोग्य तथा सुखमयी जीवन के लिए इस दिन मां व्रत रखती हैं। तीज की भांति यह व्रत भी बगैर आहार और निर्जला रखा जाता है। यह त्यौहार तीन दिन तक मनाया जाता है। सप्तमी तिथि को नहाय-खाय के पश्चात् अष्टमी तिथि को महिलाएं बच्चों की समृद्धि तथा उन्नत के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इसके पश्चात् नवमी तिथि मतलब अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है। पूजा का शुभ मुहूर्त:- जितिया व्रत की पूजा शाम में सूर्यास्त के पश्चात् आरम्भ होती है। 29 सितंबर को शाम 6 बजकर 9 मिनट पर सूर्यास्त होगा तथा इसके पश्चात् प्रदोष काल प्रारंभ हो जाएगा। अष्टमी तिथि का वक़्त रात 8:29 बजे तक है। जितिया व्रत की पूजा शाम 6:09 बजे से रात 8:29 बजे तक की जा सकती है। जितिया व्रत की पौराणिक कथा:- जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध महाभारत काल से है। युद्ध में पिता की मौत के पश्चात् अश्वत्थामा बेहद नाराज था। सीने में बदले की भावना लिए वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के भीतर पांच व्यक्ति सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। बोला जाता है कि वो सभी द्रौपदी की पांच संतानें थीं। अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। गुस्से में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की बीवी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला। ऐसे में प्रभु श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया। प्रभु श्री श्रीकृष्ण की कृपा से जिन्दा होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। तभी से संतान की लंबी आयु तथा मंगल कामना के लिए प्रत्येक वर्ष जितिया व्रत रखने की प्रथा है। जानिए आज के दिन का महत्व घर में मनी प्लांट लगाने से पहले जान ले ये जरुरी बाते जानिए आखिर क्यों पूजा में होता है आसन का इस्तेमाल?