विश्व की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी का इतिहास जानिये

बीजेपी आज 44 साल की हो गई है . 6 अप्रैल 1980 को जब इसकी स्थापना हुई थी तब इसके भारत के  राजनैतिक कैनवास पर इस स्तर के प्रभाव और विस्तार की कल्पना शायद ही किसी ने की हो  2 सांसदों की पार्टी से लेकर विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनने तक की इस यात्रा में ये बातें आपको बीजेपी के संगठन,  इतिहास,  विचारों, रणनीति और उसके नेताओं के बारे में समझने में मदद करेंगी.

 

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की शून्य से शिखर तक पहुंचने की उसकी यात्रा लंबे संघर्ष और उतार-चढ़ाव से भरी रही है. भारतीय जनता पार्टी  इतिहास ,भारतीय जनसंघ से जुड़ा है. 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में जनसंघ की स्थापना हुई थी जबकि बीजेपी का गठन 6 अप्रैल 1980 को हुआ. बीजेपी आज अपने सियासी इतिहास के सबसे बुलंद मुकाम पर है. केंद्र से लेकर देश के आधे से ज्यादा राज्यों की सत्ता पर वो काबिज है

गठन के बाद बीजेपी की कमान अटल बिहारी वाजपेयी को सौंपी गई थी और पार्टी ने उनके नेतृत्व में सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने का ख्वाब  देखा था .1984 केआम चुनाव के में तो बीजेपी महज 2 सीटों पर सिमट गई. वाजपेयी के नेतृत्व वाली उदारवादी रणनीति अभियान के असफल होने के बाद पार्टी ने हिन्दुत्व की विचारधारा के साथ जाने  का निर्णय लिया और लाल कृष्ण आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष नियुक्त किया गया और विहिप के राम जन्मभूमि आंदोलन को समर्थन दिया गया  इससे इनके समर्थन में जनादेश तैयार हुआ जिसका राजनितिक लाभ भी भाजपा को मिला .

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़ी जातियों और जनजातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग की सिफ़ारिशें लागू कीं. भाजपा को ऐसा लगने लगा कि वे अपना वोट बैंक खड़ा करना चाहते हैं. इसीलिए अब भाजपा ने हिंदुत्व के मुद्दे को दोबारा उठाया. पार्टी ने अयोध्या में 'बाबरी मस्जिद' की जगह राम मंदिर बनाने की बात कही. इस प्रकार हिंदू वोट बैंक को इकठ्ठा रखने की कोशिश की गई, जिसके मंडल रिपोर्ट आने के बाद बँट जाने का ख़तरा पैदा हो गया था. अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा भी की।.उनकी गिरफ़्तारी के बाद भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद 1991 में हुए चुनावों में प्रचार के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या कर दी गई भाजपा को इन चुनावों में 119 सीटों पर विजय मिली. इसका बड़ा श्रेय अयोध्या मुद्दे को जाता था। इसके बाद वापस कमान उदारवादी वाजपेयी को दे दी गई

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जीत-हार का सिलसिला

1996 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरी. राष्ट्रपति डॉक्टर शंकरदयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से उनकी सरकार सिर्फ़ 13 दिन में गिर गई. बाद में कांग्रेस के बाहरी समर्थन से बनीं एच.डी. देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की सरकारें भी कार्यकाल पूरा करने में असमर्थ रहीं. 1998 में एक बार फिर आम चुनाव हुए, इन चुनावों में भाजपा ने क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन और सीटों का तालेमल किया. ख़ुद पार्टी को 181 सीटों पर जीत हासिल हुई। अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने, लेकिन गठबंधन की एक प्रमुख सहयोगी जयललिता की एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने से वाजपेयी सरकार गिर गई. 1999 में एक बार फिर आम चुनाव हुए। इन चुनावों को भाजपा ने 23 सहयोगी पार्टियों के साथ साझा घोषणा-पत्र पर लड़ा और गठबंधन को "राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन" (एन.डी.ए.) का नाम दिया। एनडीए को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी फिर प्रधानमंत्री बनाये गये। वे सही मायनों में पहले ग़ैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे  2004  में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और 2014  तक केंद्र में सत्ता का वनवास झेलना पड़ा . 2014 के आम चुनाव से पहले बीजेपी की गोवा में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई जिसमें नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान का प्रमुख बनाया गया. बीजेपी ने इन चुनावों में 282 सीटों के साथ सत्ता में धमाकेदार वापसी की. यहां से बीजेपी में एक नए युग की शुरुआत हुई, जिसे मोदी-शाह युग के नाम से जाना जाता है.  2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 2014 से भी बड़ी जीत हासिल की. इस चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटें जीतीं. ये पहली बार था जब किसी गैर-कांग्रेसी पार्टी को दूसरी बार बहुमत मिला था.

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