रमजान का महीना चल रहा है इस महीने को इस्लाम धर्म में सबसे पाक महीना माना जाता है. रमजान के महीने में पुरे महीने रोजे रखे जाते है. कहा जाता है रोजा रखना से जन्नत के द्वार नसीब होते हैं. वहीं इस्लाम धर्म में जुमे की नमाज भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होती है. आज हम इसी के बारे में बताने जा रहे हैं कि क्यों होती है ये खास. इस नमाज को हर बंदा करता है सप्ताह में होने वाली इस नमाज को नियमो के साथ पढ़ने से ही ये नमाज कुबूल की जाती है . इसके बारे में कहा जाता है की नमाज पढ़ने वाले की एक के दौरान की गयी गलती या भूल को इससे माफ़ी मिल जाती है. शुक्रवार की नमाज यानी जुमे की नमाज को रहम की नमाज इसलिए ही कहा गया है जुम्मे की नमाज पढ़ने के तीन नियम होते है इन नियमो के बिना इस नमाज को अधूरा माना जाता है. आप भी नहीं जानते हैं तो जान लें क्या हैं वो नियम. बता दें, गुसल, इत्र और सिवाक इन तीन नियमो का पालन जुम्मे की नमाज से पहले किया जाना जरूरी है और उसके बाद ही इबादत की जाती है. पहले नियम के तहत गुसल का मतलब है शुक्रवार की नमाज से पहले नहाना जरूरी है. नहाकर शरीर को साफ करना जरूरी है और फिर खुद को जुम्मे की नमाज के लिए तैयार करना है. दूसरा नियम है इत्र का अगर आप नहाकर इत्र नहीं लगाते है तो आपकी नमाज कुबूल नहीं होंगी इत्र लगाना जुम्मे की नमाज के लिए बेहद जरूरी है. वहीं तीसरा है सिवाक यानि की दांतो को साफ़ करना. दांतो को साफ किये बिना आप जुम्मे की नमाज अदा नहीं कर सकते. इस्लाम में ये है 786 का महत्व, जानिए क्यों है खास जानें किन लोगों को देना सही है ज़कात, रमजान में है महत्व हिफ़ाज़त का कवच है रमजान का चौथा रोजा