कालाष्टमी के दिन सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए करें कालभैरव चालीसा का पाठ

कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन कालाष्टमी मनाई जाती है। जी हाँ और इस दिन को भगवान कालभैरव की पूजा के लिए समर्पित माना जाता है। इस वजह से इसे कालभैरव अष्टमी और भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। आपको बता दें कि यह साल में 12 बार मनाई जाती है। ऐसे में कहा जाता है कि भगवान शंकर के क्रोध में आने के कारण भगवान कालभैरव की उत्पत्ति हुई थी और इन्हें भगवान शिव का पांचवा अवतार माना जाता है। अब इस महीने कालभैरव अष्टमी आज यानी 23 अप्रैल को है। तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं कालभैरव चालीसा, इसका पाठ आपको कालभैरव अष्टमी के दिन जरूर करना चाहिए, क्योंकि इस पाठ को करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। इसके अलावा काल भैरव चालीसा का पाठ करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है और उनकी कृपा से सिद्धि-बुद्धि,धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है।

कालभैरव चालीसा-

दोहा

श्री गणपति गुरु गौरी पद प्रेम सहित धरि माथ। चालीसा वंदन करो श्री शिव भैरवनाथ॥ श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल। श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥

चालीसा

जय जय श्री काली के लाला। जयति जयति काशी-कुतवाला॥ जयति बटुक-भैरव भय हारी। जयति काल-भैरव बलकारी॥ जयति नाथ-भैरव विख्याता। जयति सर्व-भैरव सुखदाता॥ भैरव रूप कियो शिव धारण। भव के भार उतारण कारण॥ भैरव रव सुनि हवै भय दूरी। बटुक नाथ हो काल गंभीरा। श्‍वेत रक्त अरु श्याम शरीरा॥ करत नीनहूं रूप प्रकाशा। भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा॥ रत्‍न जड़ित कंचन सिंहासन। व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन॥ तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं। विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं॥ जय प्रभु संहारक सुनन्द जय। जय उन्नत हर उमा नन्द जय॥ भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय। वैजनाथ श्री जगतनाथ जय॥ महा भीम भीषण शरीर जय। रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय॥ अश्‍वनाथ जय प्रेतनाथ जय। स्वानारुढ़ सयचंद्र नाथ जय॥ निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय। गहत अनाथन नाथ हाथ जय॥ त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय। क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय॥ श्री वामन नकुलेश चण्ड जय। कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय॥ रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर। चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर॥ करि मद पान शम्भु गुणगावत। चौंसठ योगिन संग नचावत॥ करत कृपा जन पर बहु ढंगा। काशी कोतवाल अड़बंगा॥ देयं काल भैरव जब सोटा। नसै पाप मोटा से मोटा॥ जनकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा॥ श्री भैरव भूतों के राजा। बाधा हरत करत शुभ काजा॥ ऐलादी के दुख निवारयो। सदा कृपाकरि काज सम्हारयो॥ सुन्दर दास सहित अनुरागा। श्री दुर्वासा निकट प्रयागा॥ श्री भैरव जी की जय लेख्यो। सकल कामना पूरण देख्यो॥

दोहा जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार। कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार॥

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